Sunday 27 November 2016

My views on demonetization

8 नवम्बर के रात के 8 बजे के बाद सम्पूर्ण देश में हलचल मची हैं. ऐसा क्यों हैं सबको पता हैं. तबसे से ले कर अब तक केन्द्र की सरकार कुछ लोग सवालों की बौछार कर रहे हैं. कुछ नेता गण कह रहे हैं कि सरकार के नोट बंदी से जनता त्राहि त्राहि कर रही है. 
सरकार ने नोट बंदी का फैसला क्यों किया, अब सबको पता चल गया हैं. नोट बंदी का फैसला नकली नोट, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद और आतंकवाद के खात्मे के लिए किया गया हैं. देश में जितना रूपया नकद के रूप में था उनमें से पाँच सौ और एक हजार के नोटो की संख्या करीब 85% थी. ये नोट बड़ी संख्या में किसके पास थे? ये नोट क्या देश के उन 20 करोड़ लोगों के पास थे जो भूखमरी के शिकार हैं? मेरा उत्तर हैं नही. ऐसे लोग मेहनत मज़दूरी करके जो कुछ कमाते हैं रोज़ नूंन तेल आटा खरीद कर भरपेट आधा पेट खाना खाते हैं. मज़दूरी भी पाँच सौ रूपये से कम ही होती हैं. यदि अपवादों को छोड़ दिया जाय तो देश के करीब 20 करोड़ लोग बचत करने की स्थिति में नहीं होते.
जहाँ तक किसानों की बात हैं तो आज भी देश की करीब 60% जन संख्या खेती पर निर्भर करती हैं. इस बार खरीफ की फसल अच्छी हुई हैं. मतलब यह हैं खेती करने वाले लोगों और खेती पर निर्भर मजदूरों के घर में खाने के लिए काफी अनाज. गाँव की दुकानों से उधार सामान ही जाता हैं. महीने पंद्रह दिन पर भुगतान किया जाता हैं. मतलब यह कि रोज़मर्रा की चीजो के लिए भी गाँव मे कोई दिक्कत नहीं हैं.
हाँ किसानों के पास पैसे का अभाव है. यदि वे अपनी पैदावार बेच दिये होते तो उनके मुनाफाखोर व्यापारियों का काला धन अवश्य खप गया होता. इसी तरह से फैक्टरी मे काम करने वाले मज़दूरों के पास भी पैसा नही हैं क्योंकि जिन स्रोतों ( काला धन) का इस्तेमाल उन्हें वेतन के रूप होता उसी स्रोत को बँद कर दिया है.
आज के दिन सरकारी कर्मचारियों -कार्यरत या सेवा निवृत, का भुगतान नकद मे नहीं होता. प्राइवेट कम्पनियों में काम करने वालों का वेतन भी उनके खाते मे जाता हैं. उन्हें भी कोई खास परेशानी नहीं हैं.
परेशानी यदि हैं तो किसको हैं? परेशानी हैं मुनाफाखोर व्यापारियों भवन निर्माण कर्ताओं को , राजनीतिक पार्टियों को, आतंक वादियों को, नक्सलियों को. इनका जो पैसा किसानो और मजदूरों के पास आता था वह अब नहीं आ रहा हैं. इसी तरह से बैंको में जो भीड़ हो रही हैं वह नकदी की कमी के कारण नही बल्कि उन लोगों की वजह से हो रही हैं जो येन केन प्रकारेण काले धन को सफेद करने में जुटे हैं. इस लिए मेरा मानना यह है कि काले धन की वजह से जो तकलीफ हैं उसके सामने लाइन मे खड़े होने वाली तकलीफ नगण्य हैं.हमें याद रखना चाहिए कि आई एफ़ सी के गोदामों मे अनाज सड़ रहे थे और देश की 20 करोड़ जनता भूखों मर रही थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी वह अनाज गरीबों को नहीं दिया. शोर मचाने वालो के लिए लाइन मे खड़ा होना तो तकलीफदेह है लेकिन सर्दी मे लाखो लोगों का ठिठूरना, गर्मी मे लाखो लोगों का प्यास से तड़पाना, बरसात मे लाखों घरों का उजडना तक़लीफ़ देह नही हैं. वाह रे संगदिल नेता! और वाह रे ऐसे नेताओं के समर्थक!