Sunday 23 October 2016

चीन और पाकिस्तान:

चीन और पाकिस्तान: 
चीन का मतलब क्या है? पाकिस्तान का मतलब क्या हैं ? चीन या पाकिस्तान का मतलब क्या वहाँ की सरकारो से है या वहां के लोगों से हैं ? मेरी समझ से चीन या पाकिस्तान का मतलब वहां के लोगों से है न कि वहां की सरकारों से या इन देशों की भौगोलिक सीमाओं से. उसी तरह से भारत का मतलब भारत के लोगों से है न कि भारत की सरकार से. यदि चीन और पाकिस्तान भारत की राह मे कांटे बिछा रहें हैं तो उसका सीधा तात्पर्य यह है कि वहां के लोग भारत की सरकार की राह मे नहीं बल्कि भारत की जनता की राह मे कांटे बिछा रहे है. चूंकि पाकिस्तान के कलाकार भी पाकिस्तान के लोगों मे शामिल है इस लिए पाकिस्तान जो कुछ हमारे साथ कर रहा उसके लिए प्रत्यक्ष रूप से भले न सही लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से वे भी ज़िम्मेदार है. यदि पाकिस्तान हमसे दुश्मनी देश करता है तो इसका अर्थ यह है कि वहां की जनता जिसमें वहां के कलाकार भी शामिल है हमसे दुश्मनी कर रही है. क्या ऐसी जनता के हित का ख़याल रखना तर्क संगत है ? पाकिस्तान के कलाकार जो भारत से पैसा कमाते है उस पैसे से पाकिस्तान की सरकार की कमाई होती है और उस कमाई का इस्तेमाल हमें चोट पहुँचाने के लिए क्या नहीं होता ? यकीकन ऐसा होता है. इस स्थिति मे पाकिस्तान का खजाना हमारा फिल्म जगत क्यों भरता है ? क्यों पाकिस्तानी कलाकारों के लिए हमारा फिल्म जगत पलक पावडे बिछाता है? क्यों हम पाकिस्तान से कला और कलाकारों का आयात करते है ? जब चाइनीज सामानों के बहिष्कार की बात हो रही है तो पाकिस्तानी सामानों, कलाओं का बहिष्कार क्यों नहीं ? यदि फिल्म जगत अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था को मज़बूत बनाता है तो क्या फिल्म जगत अपने ही देश के लिए खतरा पैदा नहीं करता ? मैं समझता हूँ कि इन प्रश्नों मे ही उत्तर अंतर्निहित है. इस लिए जब तक पाकिस्तान हमारे साथ अपने रवैये मे बदलाव नहीं करता तब तक न फिल्म जगत को पाकिस्तानी कलाकारों का आयात नहीं करना चाहिए जबकि हमारे देश मे ही कलाकारों की भरमार है.

Saturday 8 October 2016

Surgical Strike - 2

उन्नत किश्म की बंदूक हैं. उसमें गोली भरी है. बंदूक मेरे हाथ में है. मेरी अंगुलियाँ बंदूक के ट्रिगर पर है. दुश्मन मेरे सामने खड़ा हैं -सीना ताने हुए , आँखें तरेरते हुए. उसे देख कर या किसी और आशंका से मेरी उंगलिओ में कम्पन शुरू हो जाती हैं. ट्रिगर पर मेरी पकड़ ढीली पड़ जाती है. ट्रिगर नहीं दब पाता. मैं बंदूक को ज़मीन पर रख देता हूँ. दुश्मन मेरे ऊपर अट्टहास करता है. उसका दुस्साहस बढ़ जाता है. 
सवाल है कि क्या मैं बुजदिल नही हूँ ? क्या मेरे परिवार के लोग मुझ पर शर्मिंदा नहीं होंगे ? मेरी बुज्दीली पर क्या मेरे परिवार वाले अपना सर नहीं पिटेंगे ?
मेरी जगह आप हैं. आपने दुश्मन को सुधरने का अवसर दिया. गिले शिकवे भुला कर दोस्ती का हाथ बढ़ाया. अपने आस पास के लोगों के दिल में आपने जगह बनाई. दुश्मन को गले लगाते हुये आप सावधान रहै कि वह कभी भी छूरा भोंक सकता हैं. आप अपनी शक्ति बढ़ाते रहें. आप सही समय का इंतजार करते रहे. आपने चालाकी की. आप ने दुश्मन पर उसी बंदूक से उस समय गोली दागी जब वह सोया था. आपके सामने सीना तानकर खड़े होने और आँखे तरेरने का उसे मौका ही नहीं मिला.
सवाल यह है कि क्या आपके परिवार वाले आपके ऊपर गर्व नहीं करेंगे ? क्या आपके परिवार वाले आपकी सूझ बूझ सोच और कौशल का गुणगान नहीँ करेंगे, जश्न नहीं मनाएंगे?
बंदूक तो एक ही हैं. सवाल यह है कि ट्रिगर दबाने वाला कौन है? सब कुछ निर्भर करता हैं उस शख्श के ऊपर जिसके हाथ में बंदूक हैं.
यही स्थिति सेना का हैं. सेना वह बंदूक है जिसके ट्रिगर पर सरकार का हाथ है. उक्त उदाहरण में मेरी जगह विगत कुछ सरकारें थी और आप की जगह 1965, 1971 और 1999 में जो सरकारें थी वे थी और वर्तमान सरकार है. उदाहरण में जिस तरह आपके परिवार के लोग जश्न मनाएंगे उसी तरह उक्त सरकारों के परिवारों की तरह वर्तमान सरकार का परिवार अर्थात वह पार्टी जश्न मना रही है और श्रेय ले रही है तो यह स्वाभाविक है. यदि उदाहरण में मेरा परिवार जलन की वजह से आप पर उंगली उठा रहा है तो वह सरासर गलत हैं.
मुझे आशा है कि मेरी मित्र समझ गए होगे कि मेरे कहने का अर्थ क्या हैं. सेना वही है. सेना की कमान सरकार के हाथ में है. सेना की गति सरकार के निर्णय पर आधारित है. सर्जिकल स्ट्राइक का फ़ैसला सरकार का था और उस फैसले को अंजाम देने का काम सेना ने किया. यह इतनी सामान्य सी बात हैं कि इसको समझने के लिए ज्यादा माथापच्ची करने की ज़रूरत ही नहीं हैं. किसी भी दृष्टि से इसका पूरा श्रेय बर्तमान सरकार को जाता हैं. स्वाभाविक हैं सरकार की किसी उपलब्धि पर सबसे अधिक खुशी उस पार्टी को होती हैं जिसकी सरकार होती है.

Thursday 6 October 2016

Surgical Strike - 1

एल ओ सी में सर्जिकल ऑपरेशन का सबूत माँगने वालों देश तुम लोगों से पूछ रहा है कि भारत सरकार सेना के निर्देश का पालन करती है या सेना भारत सरकार के निर्देश का पालन करती है ? 1947 में काश्मीर में सेना स्वयं गई थी या नेहरू जी के आदेश पर गई थी. 1971 में पाकिस्तान के साथ लोहा लेने का फैसला इंदिराजी की सरकार का था या सेना का ? श्रीलंका में हमारी सेना अपनी मर्ज़ी से गई थी या तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी जी के निर्देश पर गई थी ? लेकिन आप लोगों से तो सवाल ही पूछना बेकार है. इन प्रश्नों का आप कुछ भी जवाब दें सकते हो. जिस समय आप किसी विषय पर बोलते हो उस संयम आपका सारा ध्यान अपने हित साधन पर रहता है. आपकी बातों से भले देश का अहित हो रहा हो लेकिन आप वहीं कहेंगे जिससे आप के क्षुद्र स्वार्थ की पूर्ति हो. आप अपने व्यवसाय को बचाने के लिए दुश्मन देश से हाथ मिला सकते है. हैं तो आप कूप मंडूक लेकिन अग्रेजो की विरासत को कंधो पर लादकर अपने आपको सर्व ज्ञाता समझते है. क्या बेचते है अजित डोवाल आपके सामने ! बजाय डोवाल के सरकार को तो आपसे सलाह लेनी चाहिए !
मेरा सवाल इतना सरल है कि सरल हृदय का कोई भी आदमी सरलता से जवाब दें सकता है. सरल जवाब यह है कि हमारे देश की सेना बेहद अनुशासित है. वह जो भी क़दम उठाती है राष्ट्र पति जी के नाम पर उठाती है जो सेना के उच्चतम कमांडर है. भारत सरकार ने सेनाध्यक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहार इत्यादि विशेषज्ञों से सलाह लिया और उसके उपरांत सर्जिकल स्ट्राइक की सलाह राष्ट्रपति जी को दिया. यह किसी पार्टी का फैसला नही बल्कि सरकार का फैसला था. भारत सरकार सुरक्षा के मामले में कोई भी फ़ैसला सुरक्षा तंत्र से जुड़े हुये अधिकारियों की सलाह के बगैर नहीँ ले सकती. सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत किसने इकट्ठे किए होगे? जाहिर है कि सेना ने. यदि सेना सलाह देती है कि सबूत को सार्वजनिक करना सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक है तो क्या सरकार मनमानी कर सकती है ? कदापि नहीं. सरकार ने यदि किसी से कहा कि उसने सर्जिकल स्ट्राइक करवाया है तो उसको आधार सेना की रिपोर्ट है. सरकार को घेरने के लिए , उसको नीचा दिखाने के लिए आप सेना की रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े कर रहें हैं ? क्या समझा जाय आपको ? मुझे तो यह भी लगता है कि जब सरकार कहेगी कि देश हित सबूतों को सार्वजनिक करना उचित नहीं हैं तो आप यह माँग कर सकते हैं जिसने सरकार से यह कहा है वह सरकार की भाषा बोल रहा है. आप जिस पार्टी की सरकार उस पर अपनी भड़ास निकाले लेकिन उस सरकार को काम करने दें जिसे देश की जनता ने चुन कर भेजा हैं. देश के आंतरिक मामलों में भले ही आप अपनी असहति जाहिर करें लेकिन सुरक्षा और विदेश नीति के मामले में अपने विचार व्यक्त करते हुये देश हित को सर्वोपरि रखें.

Tuesday 4 October 2016

सवाल

मैं यह सवाल उन राजनीति लोगों से नहीं पूछ रहा हूँ जो यह माँग कर रहें हैं कि पाकिस्तान के मिथ्या प्रचार की धार कुंद करने के लिए सरकार को संसार के सामने सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत पेश करना चाहिए. मेरा सवाल देश के मतदाताओं से हैं जिन्होंने ऐसे राजनीतिज्ञों को शक्ति प्रदान की है. मैं ऐसे मतदाताओं से पूछना चाहता हूँ कि कब तक ऐसे नेताओं को पैदा करते रहेंगे? ऐसे नेताओं से पूछने चाहिए कि क्या सरकार के निर्णय के बगैर भारतीय सेना एल ओ सी पार कर सकती थी. 1971 में यदि भारत की सेना ने पाकिस्तान से लोहा लिया था तो वह किसके आदेश से लिया था. 1971 के युद्ध के बारे मे यदि कोई सेना का अधिकृत अधिकारी बयान देता है और उस बयान का पाकिस्तान खंडन करता है तो क्या पाकिस्तान या किसी अन्य देश को आश्वस्त करने के लिए क्या हमें सबूत देना चाहिए? मसूद अजहर के आतंक मे लिप्त होने के हमने सबूत दिए तो क्या पाकिस्तान और चीन ने उसे मान लिया ? आखिर कार पाकिस्तान ने कभी हमारी बात सुनी हैं? 1947 से ले कर आज़ तक जब पाकिस्तान ने हमारी बात पर गौर नहीं किया तो आज़ वह कैसे मान लेगा कि जो सबूत हम वे सही हैं? क्या ऐसे नेताओं और अभिनेताओं को शर्म नहीं आनी चाहिए जिनके बयानों को मसूद अजहर भारत की खिल्ली उडाने के लिए इस्तेमाल करता हैं ? लेकिन नहीं. ऐसे नेता और राजनेता पूरी तरह बेशर्म हैं. घर फूटे गँवार लूटे. अब तक पाकिस्तान का कोई नही सुन रहा था. लेकिन क्या पाकिस्तान ऐसे नेताओं के बयानों का उल्लेख अपने नापाक इरादों के लिए नहीं करेगा? क्या इतनी सी छोटी बात ऐसे नेताओं की समझ में नहीं आती ? अवश्य आती है. मेरा यह मानना है कि ऐसे नेता सब कुछ समझते हुये भी क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश की अस्मिता से खिलवाड़ करने से भी परहेज़ नहीं करते. ऐसे नेताओं को मुहतोड़ जवाब देने की ज़रूरत है.

Sunday 2 October 2016

Depth of Gandhi Ji.

Depth of Gandhi ji can't be fathomed with shallow thinking. He can be fathomed only by a keen observer who has immense patience, deep thinking and great feelings. The tragedy is that he has been read since independence by eyes of mind and eyes of narrowness and not by eyes of heart.