Tuesday, 4 October 2016

सवाल

मैं यह सवाल उन राजनीति लोगों से नहीं पूछ रहा हूँ जो यह माँग कर रहें हैं कि पाकिस्तान के मिथ्या प्रचार की धार कुंद करने के लिए सरकार को संसार के सामने सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत पेश करना चाहिए. मेरा सवाल देश के मतदाताओं से हैं जिन्होंने ऐसे राजनीतिज्ञों को शक्ति प्रदान की है. मैं ऐसे मतदाताओं से पूछना चाहता हूँ कि कब तक ऐसे नेताओं को पैदा करते रहेंगे? ऐसे नेताओं से पूछने चाहिए कि क्या सरकार के निर्णय के बगैर भारतीय सेना एल ओ सी पार कर सकती थी. 1971 में यदि भारत की सेना ने पाकिस्तान से लोहा लिया था तो वह किसके आदेश से लिया था. 1971 के युद्ध के बारे मे यदि कोई सेना का अधिकृत अधिकारी बयान देता है और उस बयान का पाकिस्तान खंडन करता है तो क्या पाकिस्तान या किसी अन्य देश को आश्वस्त करने के लिए क्या हमें सबूत देना चाहिए? मसूद अजहर के आतंक मे लिप्त होने के हमने सबूत दिए तो क्या पाकिस्तान और चीन ने उसे मान लिया ? आखिर कार पाकिस्तान ने कभी हमारी बात सुनी हैं? 1947 से ले कर आज़ तक जब पाकिस्तान ने हमारी बात पर गौर नहीं किया तो आज़ वह कैसे मान लेगा कि जो सबूत हम वे सही हैं? क्या ऐसे नेताओं और अभिनेताओं को शर्म नहीं आनी चाहिए जिनके बयानों को मसूद अजहर भारत की खिल्ली उडाने के लिए इस्तेमाल करता हैं ? लेकिन नहीं. ऐसे नेता और राजनेता पूरी तरह बेशर्म हैं. घर फूटे गँवार लूटे. अब तक पाकिस्तान का कोई नही सुन रहा था. लेकिन क्या पाकिस्तान ऐसे नेताओं के बयानों का उल्लेख अपने नापाक इरादों के लिए नहीं करेगा? क्या इतनी सी छोटी बात ऐसे नेताओं की समझ में नहीं आती ? अवश्य आती है. मेरा यह मानना है कि ऐसे नेता सब कुछ समझते हुये भी क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश की अस्मिता से खिलवाड़ करने से भी परहेज़ नहीं करते. ऐसे नेताओं को मुहतोड़ जवाब देने की ज़रूरत है.

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