Thursday, 6 October 2016

Surgical Strike - 1

एल ओ सी में सर्जिकल ऑपरेशन का सबूत माँगने वालों देश तुम लोगों से पूछ रहा है कि भारत सरकार सेना के निर्देश का पालन करती है या सेना भारत सरकार के निर्देश का पालन करती है ? 1947 में काश्मीर में सेना स्वयं गई थी या नेहरू जी के आदेश पर गई थी. 1971 में पाकिस्तान के साथ लोहा लेने का फैसला इंदिराजी की सरकार का था या सेना का ? श्रीलंका में हमारी सेना अपनी मर्ज़ी से गई थी या तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी जी के निर्देश पर गई थी ? लेकिन आप लोगों से तो सवाल ही पूछना बेकार है. इन प्रश्नों का आप कुछ भी जवाब दें सकते हो. जिस समय आप किसी विषय पर बोलते हो उस संयम आपका सारा ध्यान अपने हित साधन पर रहता है. आपकी बातों से भले देश का अहित हो रहा हो लेकिन आप वहीं कहेंगे जिससे आप के क्षुद्र स्वार्थ की पूर्ति हो. आप अपने व्यवसाय को बचाने के लिए दुश्मन देश से हाथ मिला सकते है. हैं तो आप कूप मंडूक लेकिन अग्रेजो की विरासत को कंधो पर लादकर अपने आपको सर्व ज्ञाता समझते है. क्या बेचते है अजित डोवाल आपके सामने ! बजाय डोवाल के सरकार को तो आपसे सलाह लेनी चाहिए !
मेरा सवाल इतना सरल है कि सरल हृदय का कोई भी आदमी सरलता से जवाब दें सकता है. सरल जवाब यह है कि हमारे देश की सेना बेहद अनुशासित है. वह जो भी क़दम उठाती है राष्ट्र पति जी के नाम पर उठाती है जो सेना के उच्चतम कमांडर है. भारत सरकार ने सेनाध्यक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहार इत्यादि विशेषज्ञों से सलाह लिया और उसके उपरांत सर्जिकल स्ट्राइक की सलाह राष्ट्रपति जी को दिया. यह किसी पार्टी का फैसला नही बल्कि सरकार का फैसला था. भारत सरकार सुरक्षा के मामले में कोई भी फ़ैसला सुरक्षा तंत्र से जुड़े हुये अधिकारियों की सलाह के बगैर नहीँ ले सकती. सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत किसने इकट्ठे किए होगे? जाहिर है कि सेना ने. यदि सेना सलाह देती है कि सबूत को सार्वजनिक करना सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक है तो क्या सरकार मनमानी कर सकती है ? कदापि नहीं. सरकार ने यदि किसी से कहा कि उसने सर्जिकल स्ट्राइक करवाया है तो उसको आधार सेना की रिपोर्ट है. सरकार को घेरने के लिए , उसको नीचा दिखाने के लिए आप सेना की रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े कर रहें हैं ? क्या समझा जाय आपको ? मुझे तो यह भी लगता है कि जब सरकार कहेगी कि देश हित सबूतों को सार्वजनिक करना उचित नहीं हैं तो आप यह माँग कर सकते हैं जिसने सरकार से यह कहा है वह सरकार की भाषा बोल रहा है. आप जिस पार्टी की सरकार उस पर अपनी भड़ास निकाले लेकिन उस सरकार को काम करने दें जिसे देश की जनता ने चुन कर भेजा हैं. देश के आंतरिक मामलों में भले ही आप अपनी असहति जाहिर करें लेकिन सुरक्षा और विदेश नीति के मामले में अपने विचार व्यक्त करते हुये देश हित को सर्वोपरि रखें.

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