13.5.2016 को व्हाट्सेप से ले कर मैने एक कविता पोस्ट किया था. तब से मेरे दिमाग मॆं बार बार एक सवाल उठ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है ?
उक्त पोस्ट के पहले मैने इस समस्या से जुड़ा हुआ एक पोस्ट किया था. उसके शीर्षक था अंत भला तो सब भला. लेकिन हो इसका बिल्कुल उल्टा रहा है. ज़िन्दगी के अंतिम पायदान पर पहुँचने के बाद प्राय सभी लोगों का अंत बुरा है. यह समस्या एक महामारी की तरह समाज मॆं फैल गयी है. यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीँ दिया गया तो आगे चल कर ऐसी अराजकता फैलेगी कि तथा कथित सभ्य समाज जंगल की व्यवस्था मॆं तब्दील हो जाएगा. हममें से प्रायः अधिकांश लोगों ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध रखी है. हममें से अधिकाँश लोगों को लगता है कि इस तरह की घटनाये हमारे साथ नहीँ घटेगी. हम यह भी सोचते हैं कि जब इस तरह की चीज़ सामने आएगी तो देखी जाएगी. अभी से हम उसकी चिंता क्यों करें. अभी मौज मस्ती का अवसर मिला है. ऐसे सुअवसर का लाभ क्यों न उठाया जाय.
मित्रों चिंता तो किसी बात की नहीँ करनी चाहिए.हाँ चिंतन से मुँह नहीँ मोड़ना चाहिए. हमें अवश्य पता होना चाहिए कि हम कहाँ जा रहें हैं. क्या आगे गड्ढा तो नहीँ है. लेकिन नहीँ. हम यह सुनना भी नहीँ चाहते कि हम एक भयंकर गड्ढे मॆं गिरने जा रहें.
मित्रों आइए हम सत्य का सामना करे. यथार्थ को स्वीकार करे. अपनी आँख पर पड़ी पट्टी को हटाएँ और समय रहते उस गड्ढे को समतल करने का प्रयास करें.ताकि भले ही हम उस गड्ढे मॆं गिर कर सडे लेकिन आने वाली संतति उस गड्ढे मॆं गिर कर सड़ने न पाये. आइए हम देखें कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? कौन है इसके लिऐ ज़िम्मेदार ? हम, हमारे बच्चे, आज का समाज या आज की शिक्षा व्यवस्था या कोई और ?
उक्त पोस्ट के पहले मैने इस समस्या से जुड़ा हुआ एक पोस्ट किया था. उसके शीर्षक था अंत भला तो सब भला. लेकिन हो इसका बिल्कुल उल्टा रहा है. ज़िन्दगी के अंतिम पायदान पर पहुँचने के बाद प्राय सभी लोगों का अंत बुरा है. यह समस्या एक महामारी की तरह समाज मॆं फैल गयी है. यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीँ दिया गया तो आगे चल कर ऐसी अराजकता फैलेगी कि तथा कथित सभ्य समाज जंगल की व्यवस्था मॆं तब्दील हो जाएगा. हममें से प्रायः अधिकांश लोगों ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध रखी है. हममें से अधिकाँश लोगों को लगता है कि इस तरह की घटनाये हमारे साथ नहीँ घटेगी. हम यह भी सोचते हैं कि जब इस तरह की चीज़ सामने आएगी तो देखी जाएगी. अभी से हम उसकी चिंता क्यों करें. अभी मौज मस्ती का अवसर मिला है. ऐसे सुअवसर का लाभ क्यों न उठाया जाय.
मित्रों चिंता तो किसी बात की नहीँ करनी चाहिए.हाँ चिंतन से मुँह नहीँ मोड़ना चाहिए. हमें अवश्य पता होना चाहिए कि हम कहाँ जा रहें हैं. क्या आगे गड्ढा तो नहीँ है. लेकिन नहीँ. हम यह सुनना भी नहीँ चाहते कि हम एक भयंकर गड्ढे मॆं गिरने जा रहें.
मित्रों आइए हम सत्य का सामना करे. यथार्थ को स्वीकार करे. अपनी आँख पर पड़ी पट्टी को हटाएँ और समय रहते उस गड्ढे को समतल करने का प्रयास करें.ताकि भले ही हम उस गड्ढे मॆं गिर कर सडे लेकिन आने वाली संतति उस गड्ढे मॆं गिर कर सड़ने न पाये. आइए हम देखें कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? कौन है इसके लिऐ ज़िम्मेदार ? हम, हमारे बच्चे, आज का समाज या आज की शिक्षा व्यवस्था या कोई और ?