Saturday, 14 May 2016

A question ?

13.5.2016 को व्हाट्सेप से ले कर मैने एक कविता पोस्ट किया था. तब से मेरे दिमाग मॆं बार बार एक सवाल उठ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है ?
उक्त पोस्ट के पहले मैने इस समस्या से जुड़ा हुआ एक पोस्ट किया था. उसके शीर्षक था अंत भला तो सब भला. लेकिन हो इसका बिल्कुल उल्टा रहा है. ज़िन्दगी के अंतिम पायदान पर पहुँचने के बाद प्राय सभी लोगों का अंत बुरा है. यह समस्या एक महामारी की तरह समाज मॆं फैल गयी है. यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीँ दिया गया तो आगे चल कर ऐसी अराजकता फै
लेगी कि तथा कथित सभ्य समाज जंगल की व्यवस्था मॆं तब्दील हो जाएगा. हममें से प्रायः अधिकांश लोगों ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध रखी है. हममें से अधिकाँश लोगों को लगता है कि इस तरह की घटनाये हमारे साथ नहीँ घटेगी. हम यह भी सोचते हैं कि जब इस तरह की चीज़ सामने आएगी तो देखी जाएगी. अभी से हम उसकी चिंता क्यों करें. अभी मौज मस्ती का अवसर मिला है. ऐसे सुअवसर का लाभ क्यों न उठाया जाय.
मित्रों चिंता तो किसी बात की नहीँ करनी चाहिए.हाँ चिंतन से मुँह नहीँ मोड़ना चाहिए. हमें अवश्य पता होना चाहिए कि हम कहाँ जा रहें हैं. क्या आगे गड्ढा तो नहीँ है. लेकिन नहीँ. हम यह सुनना भी नहीँ चाहते कि हम एक भयंकर गड्ढे मॆं गिरने जा रहें.
मित्रों आइए हम सत्य का सामना करे. यथार्थ को स्वीकार करे. अपनी आँख पर पड़ी पट्टी को हटाएँ और समय रहते उस गड्ढे को समतल करने का प्रयास करें.ताकि भले ही हम उस गड्ढे मॆं गिर कर सडे लेकिन आने वाली संतति उस गड्ढे मॆं गिर कर सड़ने न पाये. आइए हम देखें कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? कौन है इसके लिऐ ज़िम्मेदार ? हम, हमारे बच्चे, आज का समाज या आज की शिक्षा व्यवस्था या कोई और ?

Friday, 13 May 2016

“मैंने दहेज़ नहीं माँगा”


व्हाट्सेप से ली गयी कविता जो यथार्थ का वर्णन करती हैं नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ.

 
साहब मैं थाने नहीं आउंगा,
अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा,
माना पत्नी से थोडा मन मुटाव था,
सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था,
पर यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”



मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है,
महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है।
चाहत मेरी भी बस ये थी कि माँ बाप का सम्मान हो,
उन्हें भी समझे माता पिता, न कभी उनका अपमान हो।
पर अब क्या फायदा, जब टूट ही गया हर रिश्ते का धागा,
यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”



परिवार के साथ रहना इसे पसंन्द नहीं,
कहती यहाँ कोई रस, कोई आनन्द नही,
मुझे ले चलो इस घर से दूर, किसी किराए के आशियाने में,
कुछ नहीं रखा माँ बाप पर प्यार बरसाने में,
हाँ छोड़ दो, छोड़ दो इस माँ बाप के प्यार को,
नहीं मांने तो याद रखोगे मेरी मार को,
बस बूढ़े माता पिता का ही मोह, न छोड़ पाया मैं अभागा,
यकींन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”



फिर शुरू हुआ वाद विवाद माँ बाप से अलग होने का,
शायद समय आ गया था, चैन और सुकून खोने का,
एक दिन साफ़ मैंने पत्नी को मना कर दिया,
न रहुगा माँ बाप के बिना ये उसके दिमाग में भर दिया।
बस मुझसे लड़ कर मोहतरमा मायके जा पहुंची,
2 दिन बाद ही पत्नी के घर से मुझे धमकी आ पहुंची,
माँ बाप से हो जा अलग, नहीं सबक सीखा देगे,
क्या होता है दहेज़ कानून तुझे इसका असर दिखा देगें।
परिणाम जानते हुए भी हर धमकी को गले में टांगा,
यकींन माँनिये साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”



जो कहा था बीवी ने, आखिरकार वो कर दिखाया,
झगड़ा किसी और बात पर था, पर उसने दहेज़ का नाटक रचाया।
बस पुलिस थाने से एक दिन मुझे फ़ोन आया,
क्यों बे, पत्नी से दहेज़ मांगता है, ये कह के मुझे धमकाया।
माता पिता भाई बहिन जीजा सभी के रिपोर्ट में नाम थे,
घर में सब हैरान, सब परेशान थे,
अब अकेले बैठ कर सोचता हूँ, वो क्यों ज़िन्दगी में आई थी,
मैंने भी तो उसके प्रति हर ज़िम्मेदारी निभाई थी।
आखिरकार तमका मिला हमे दहेज़ लोभी होने का,
कोई फायदा न हुआ मीठे मीठे सपने सजोने का।
बुलाने पर थाने आया हूँ, छूप कर कहीं नहीं भागा,
लेकिन यकींन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”


😪झूठे दहेज के मुकदमों के कारण, पुरुष के दर्द से ओतप्रोत एक मार्मिक कृति…🙏🏻
🐅🌞🌞🐅

Sunday, 1 May 2016

"अंत भला तो सब भला"



हम सभी इस कहावत से परिचित हैं ।मेरा सवाल है क्या यह कहावत आज भी चरितार्थ है ? मुझे लगता है कि यह कहावत चरितार्थ नही है । यदि हम और आप इस पर गौर करें तो हम पायेंगे कि आज कल किसी का अंत भला नही है। सभी के साथ ऐसा नहीँ लेकिन मुझे यही लगता है कि कतिपय अपवादों को छोड़ कर सभी का अंत भला नहीँ बल्कि बुरा ही हो रहा है । मुझे यह कहने में ज़रा सा भी संकोच नहीँ हो रहा है कि यदि हमारे बच्चे संस्कार विहीन है तो हम लख कोशिश करेंगे हमारा अंत भी भला नहीँ है । हो सकता है ज...ो लोग अपने आपको अंधकार और धोखे में रखते है इस हकीकत को स्वीकार न करे और मेरे कथन को निराशावादी बताये लेकिन अगर अपने आसपास नज़र दौड़ाएंगे तो उन्हें लगेगा कि यही हकीक़त है ।
मैं गाँव गया था । आज ही लौटा हूं । मैं गाँव में घटित कुछ घटानाओं का जिक्र करना चाहता हूँ ।
मेरे गाँव में एक पढ़े लिखे व्यक्ति थे । उनका एक ही बेटा है । बेटा भी पढ़ने लिखने में ठीक था। वह नौकरी कर रहा है या क्या कर रहा है इसके बारे में मुझे बहुत कुछ पता नही है। लेकिन वह ठीक ठाक स्थिति में है और बेबी बच्चो के साथ बाहर रहता है । उसके बुजुर्ग माँ बाप गाँव मे ही रहते थे । एक दिन तंग आकर लड़के की माँ ने अपने बुजुर्ग पति से कहा कि ऐसी जिंदगी से मैं तंग आ गयी हूँ । मुझे अब जीने का मन नहीँ करता । यही मन करता है कि ज़हर खा लूँ । उसके बुजुर्ग पति ने कहा कि तुम ठीक कहती हो लेकिन जान भी जल्दी से नहीँ निकलती । हमे इसी तरह जीना होगा । पता नहीँ बुजुर्ग महिला के दिमाग मे क्या आया उसने कोई पाऊडर जो ज़हर था घोल कर पी गयी । ज़हर पीने के बाद उसने अपने आँगन में रहने वाली एक औरत से किया । शायद लोगों ने कोशिश भी की लेकिन वह नही बच पायी । पत्नी की मौत के बाद भी बुजुर्ग आदमी को उसके बेटे के यहाँ ठौर नहीँ मिला । वह अपनी बेटी के यहाँ गयी । शाल भर बाद वर भी चल बसे ।
मैं उस लड़की को जानता हूँ । वह बहुत ही शरीफ लड़का था । वह इतना बेदर्द नही है । मुझे नहीँ लगता कि उसमें संस्कार की कमी है । तो फ़िर ऐसा कैसे हुआ ? मुझे तो यही लगता है कि वह मजबूर होगा । मजबूर किसी और ने नही बल्कि उसकी पत्नी ने किया होगा ? ऐसे मामलो मे हम और आप आँख बँद करके बैठे है । हम यह समझ बैठे है कि इस घटना से हमें कूछ भी लेना देना नही । इस तरह की अनेक घटनाएँ रोज़ समाज मे घटित हो रहिए है । पता नही कितने बुजुर्ग रोज़ काल का ग्रास बन रहे है लेकिन कहीँ भी इसकी चर्चा नही हो रहिए है । महिलाओं के लिये लड़ने वली महिलाओं को इससे कोई मतलब नहीँ है । पाखंडी मानवाधिकार के प्रहरीयो को इन सब घटनाओं से कूछ भी लेना देना नही । आखिर क्या मिलेगा इन लोगो को अपाहिज सरीखे बुजुर्गो की हालत का जायजा । कौन कत्ल कर रहा है रहा है इन बुजुर्गो का ? हम सब जागे और पहचाने ऐसे लोगों को । उन्हें रास्ते पर लाने का प्रयास करें और ज़रूरत पड़े तो ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करें ।
जिन स्कूलों में ऐसे लोगो के बच्चे पड़ती है उन स्कूलों मे जा कर अध्यापक और अढ्यापिकाओ मे मिले और अनुरोध करें कि अध्यापक और अढ्यापिकाये ऐसे बच्चो को विशेष रूप से दादा दादी की सेवा के लिये प्रेरित करें. धन्यवाद