Sunday, 1 May 2016

"अंत भला तो सब भला"



हम सभी इस कहावत से परिचित हैं ।मेरा सवाल है क्या यह कहावत आज भी चरितार्थ है ? मुझे लगता है कि यह कहावत चरितार्थ नही है । यदि हम और आप इस पर गौर करें तो हम पायेंगे कि आज कल किसी का अंत भला नही है। सभी के साथ ऐसा नहीँ लेकिन मुझे यही लगता है कि कतिपय अपवादों को छोड़ कर सभी का अंत भला नहीँ बल्कि बुरा ही हो रहा है । मुझे यह कहने में ज़रा सा भी संकोच नहीँ हो रहा है कि यदि हमारे बच्चे संस्कार विहीन है तो हम लख कोशिश करेंगे हमारा अंत भी भला नहीँ है । हो सकता है ज...ो लोग अपने आपको अंधकार और धोखे में रखते है इस हकीकत को स्वीकार न करे और मेरे कथन को निराशावादी बताये लेकिन अगर अपने आसपास नज़र दौड़ाएंगे तो उन्हें लगेगा कि यही हकीक़त है ।
मैं गाँव गया था । आज ही लौटा हूं । मैं गाँव में घटित कुछ घटानाओं का जिक्र करना चाहता हूँ ।
मेरे गाँव में एक पढ़े लिखे व्यक्ति थे । उनका एक ही बेटा है । बेटा भी पढ़ने लिखने में ठीक था। वह नौकरी कर रहा है या क्या कर रहा है इसके बारे में मुझे बहुत कुछ पता नही है। लेकिन वह ठीक ठाक स्थिति में है और बेबी बच्चो के साथ बाहर रहता है । उसके बुजुर्ग माँ बाप गाँव मे ही रहते थे । एक दिन तंग आकर लड़के की माँ ने अपने बुजुर्ग पति से कहा कि ऐसी जिंदगी से मैं तंग आ गयी हूँ । मुझे अब जीने का मन नहीँ करता । यही मन करता है कि ज़हर खा लूँ । उसके बुजुर्ग पति ने कहा कि तुम ठीक कहती हो लेकिन जान भी जल्दी से नहीँ निकलती । हमे इसी तरह जीना होगा । पता नहीँ बुजुर्ग महिला के दिमाग मे क्या आया उसने कोई पाऊडर जो ज़हर था घोल कर पी गयी । ज़हर पीने के बाद उसने अपने आँगन में रहने वाली एक औरत से किया । शायद लोगों ने कोशिश भी की लेकिन वह नही बच पायी । पत्नी की मौत के बाद भी बुजुर्ग आदमी को उसके बेटे के यहाँ ठौर नहीँ मिला । वह अपनी बेटी के यहाँ गयी । शाल भर बाद वर भी चल बसे ।
मैं उस लड़की को जानता हूँ । वह बहुत ही शरीफ लड़का था । वह इतना बेदर्द नही है । मुझे नहीँ लगता कि उसमें संस्कार की कमी है । तो फ़िर ऐसा कैसे हुआ ? मुझे तो यही लगता है कि वह मजबूर होगा । मजबूर किसी और ने नही बल्कि उसकी पत्नी ने किया होगा ? ऐसे मामलो मे हम और आप आँख बँद करके बैठे है । हम यह समझ बैठे है कि इस घटना से हमें कूछ भी लेना देना नही । इस तरह की अनेक घटनाएँ रोज़ समाज मे घटित हो रहिए है । पता नही कितने बुजुर्ग रोज़ काल का ग्रास बन रहे है लेकिन कहीँ भी इसकी चर्चा नही हो रहिए है । महिलाओं के लिये लड़ने वली महिलाओं को इससे कोई मतलब नहीँ है । पाखंडी मानवाधिकार के प्रहरीयो को इन सब घटनाओं से कूछ भी लेना देना नही । आखिर क्या मिलेगा इन लोगो को अपाहिज सरीखे बुजुर्गो की हालत का जायजा । कौन कत्ल कर रहा है रहा है इन बुजुर्गो का ? हम सब जागे और पहचाने ऐसे लोगों को । उन्हें रास्ते पर लाने का प्रयास करें और ज़रूरत पड़े तो ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करें ।
जिन स्कूलों में ऐसे लोगो के बच्चे पड़ती है उन स्कूलों मे जा कर अध्यापक और अढ्यापिकाओ मे मिले और अनुरोध करें कि अध्यापक और अढ्यापिकाये ऐसे बच्चो को विशेष रूप से दादा दादी की सेवा के लिये प्रेरित करें. धन्यवाद

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