Saturday, 16 April 2016

पुलिस, प्रेस और मेरा व्यक्तिगत अनुभव


आज के दैनिक जागरण में एक खबर छपी है जिसमें लिखा है कि दो पुलिस के सिपाहियों को लाइन हाजिर कर दिया गया है. वह इस लिए कि दोनों सोते हुए पाए गए.
जिसने भी इस खबर को पढ़ा होगा उसके दिमाग एक ही बात आई होगी कि पुलिस अपना काम ठीक से नहीं करती है. किसी के भी दिमाग में यह नहीं आया होगा कि हो सकता है कि पुलिस उन सिपाहियों को लगातार काम करना पड़ा हो और इस लिए उनको नींद आ गई हो. खैर यह एक जाँच का विषय है कि जिन पुलिस के सिपाहियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है क्या वे हमेशा से अपनी द्यूटी में लापरवाही बरतते रहे हैं या इत्तफाकन ऐसा हुआ है.
मेरी समझ से इस खबर को दिखाने के साथ साथ यदि यह भी दिखाया जाता कि पुलिस के सिपाही किन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं तो शायद पुलिस महकमें के साथ न्याय होता. दुर्भाज्ञ से ऐसा नहीं होता.
मुझे ऐसा महसूस होता है कि सिर्फ पुलिस तंत्र की ही नहीं, समस्त सरकारी तंत्र और इसके सभी प्रतिनिधियों के बारे में ही जन सामान्य के मनो मस्तिष्क में अच्छी तस्वीर नहीं हैं. यह सिर्फ इस लिए नहीं कि सरकारी मशीनरी ठीक ढंग से काम नहीं करता बल्कि इस लिए भी कि सरकारी तंत्र का जन सामान्य से अच्छा व्यवहार नहीं करता. इसका परिणाम यह है कि लोगों को सरकारी तंत्र में विश्वास कम हो गया है.
मैंने लिओ टॉलस्टॉय की एक कृति ‘रिजरेक्शन’ पढ़ी थी. उसमें उन्होनें ने इस बात की तरफ इशारा किया था कि सरकारी तंत्र को चलाने वाले कर्मियों में भी दिल होता है, उनमें भी भावनाएं होती है, मगर वे अपने कर्तव्य के निर्वहन के लिए अपने दिल की आवाज से अधिक तंत्र की व्यवस्थाओं से निर्देशित होते हैं. इसी लिए कभी कभी वे कठोर नजर आते हैं.
दुनियाँ का कोई भी आदमी या तंत्र पूर्ण नहीं है. सब में कमियाँ और अच्छाइयाँ है. पुलिस विभाग में भी कमियाँ और अच्छाइयाँ है.
आम धारणा यह है कि पुलिस का व्यवहार ठीक नहीं होता, पुलिस वाले लोगों से ठीक से पेश नहीं आते हैं, सीधी मुँह बात नहीं करते, दुर्व्यवहार करते हैं. इसी तरह की बहुत सी धारनाएं पुलिस वालों के बारे में हैं.
पुलिस की छवि ऐसी बना दी गई है कि कोई भी आदमी पुलिस वालों के सम्पर्क में नहीं आना चाहता. पुलिस के प्रति लोगों के दिमाग में डर भर दिया हैं.
जन समान्य के मन में पुलिस के प्रति इस तरह की नकारात्मक सोच के लिए कौन जिम्मेदार हैं? क्या वे लोग जिनके साथ पुलिस ने किसी समय बर्बरता का व्यवहार किया? मेरी समझ से नहीं. इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार मिडिया जगत और विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मिडिया है.
मेरा यह मानना है समाज में कतिपय लोग ही ऐसे होंगे जिनका कभी न कभी पुलिस से काम पड़ा होगा. ऐसे लोगों की संख्या नगण्य होगी. लेकिन लगभग सभी लोगों के मन में पुलिस के बारे नकारात्मक विचार भर दिया गया है. मिडिया कभी नहीं दर्शाता की पुलिस वालों को किन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है.
मैं समझता हूँ कि सभी लोग इस बात से सहमत होंगे की अपवाद हर जगह है. लेकिन मिडिया जगत अपवाद को ही ऐसे प्रस्तुत करता है कि लगता है कि पुलिस का रवैया वैसा ही है जैसा कि मिडिया में दिखाया या बताया जा रहा है.
दो तीन बार मेरा भी पुलिस विभाग से काम पड़ा है. मुझे जो अनुभव हुआ उसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ.
पिछले साल मैं मध्य प्रदेश गया था. वहाँ पर बस में मेरी जेब कट गई थी. जेब में बाकी दस्तावेज के साथ साथ मेरा ड्राइविंग लाइसेंस और विभागीय पहचान पत्र भी थे. पहचान पत्र की की तत्कालीन आवश्यकता ट्रेन में टीटी को दिखाने के लिए थी. अत: पुलिस थाने में इसकी सूचना देनी आवश्यक थी. अगले दिन जब मैं वापस आ रहा था तो वहाँ के थाने में गया. थाने में मुझे बड़े प्रेम से बैठाया गया, एक आदमी पानी और उसके बाद चाय ले कर आया. जन सामन्य की तरह मेरे दिमाग़ में भी पुलिस की छवि अच्छी नहीं थी. अत: इस तरह का वहाँ का व्यवहार देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा था. मैं जेब कटने की सूचना लिखित रूप से वहाँ पर दिया. एस.एच.ओ. ने मेरा नम्बर भी ले लिया.
दूसरा अनुभव अद्यतन है. इस अनुभव से यह भी ज्ञात होता है कि पासपोर्ट कार्यालय और पुलिस विभाग में कितनी सक्रियता है.
मैंने अपने और अपनी पत्नी के पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था. 29.3.2016 को पी.एस.के. साहिबाबाद मे मूल दस्तावेजों का सत्यापन हुआ. 30.3.2016 को ही पासपोर्ट कार्यालय से हमारे पास संदेश आ गया कि पुलिस सत्यापन के लिए गाज़ियाबाद एस.पी. ऑफिस को सूचना भेज दी गई है. उक्त संदेश में हमें निर्देश दिया गया कि यदि 21 दिन में पुलिस का सत्यापन नहीं होता है हम गाज़ियाबाद एस.पी. ऑफिस से सम्पर्क करें. मेरे दिमाग में भी कुछ हद तक नकारात्मक चीजे मिडिया जगत की वजह से भर गई थी. मैं सोच भी नहीं सकता था कि पासपोर्ट कार्यालय आजकल इतनी तत्परता के साथ काम कर रहा है. यह सूचना पाकर मुझे बड़ी खुशी हुई. अब जरा पुलिस विभाग की तत्परता देखिए. उसी दिन 30.3.2016 शाम को मेरे पास पुलिस थाने से एक कॉस्टेबल का फोन आया और उसने मुझसे सत्यापन के लिए समय माँगा. मैंने कहा कि आप अगले दिन आठ बजे आ जाओ. इसका मतलब यह हुआ कि 30.3.2016 को ही पासपोर्ट कार्यालय से गाज़ियाबाद एस.एस.पी. कार्यालय को सत्यापन के लिए सूचना आई और उसी दिन गाज़ियाबाद एस.एस.पी. कार्यालय ने वह सूचना कवि नगर थाने को भेज दी और कवि नगर थाने ने सत्यापन का काम सम्बंधित सिपाही को सौंप दिया और उस सिपाही ने बिना देर किए हुए मुझसे सम्पर्क कर लिया.
अगले दिन अर्थात 31.3.2016 को ही वह आठ बजे सुबह वह सिपाही मेरे घर आया और सत्यापन कर के चला गया. उसी दिन उसने अपनी आख्या प्रस्तुत कर दी. उसी दिन वह आख्या गाज़ियाबाद एस.एस.पी. कार्यालय को भेज दी गई. गाज़ियाबाद एस.एस.पी. कार्यालय ने अगले दिन अर्थात 1.4.2016 को ही वह एल.आए.यू. को अग्रिम कार्यवही के लिए आदेश भेज दिया. त्वरित कार्यवाही का परिणाम यह हुआ कि 12.3.2016 को मुझे पासपोर्ट मिल गया.
मेरी पत्नी का पासपोर्ट नहीं मिला. इसका पता लगाने के लिए 9.4.2016 को कवि नगर पुलिस थाने गया. मुझे इसके बारे में सूचना कहाँ से मिलेगी यह बताया गया. उस समय दिन के लगभग तीन बजे थे. जिस सिपाही से मिलने के लिए मुझसे कहा गया था, उसकी सीट पर एक दूसरा सिपाही सो रहा था. वह भी हल्की फुल्की नींद में ही नहीं बल्कि गहरी नींद में. वह जगा और बताया कि उसकी द्यूटी एक चौकी पर है और सम्बंधित सिपाही लंच कर रहे हैं. मैं वापस उस सब इंस्पेक्टर के पास आया जिसने मुझे उक्त सिपाही से मिलने के लिए कहा था. मैंने उससे पूछा कि कितने बजे तक लंच है. मेरी बात सुन कर वह हँसने लगा और कहा कि सर यहाँ नाश्ता या लंच का कोई समय नहीं है. उसने अपने बारे में बताया कि उस समय तक उसने खुद नाश्ता नहीं किया था. उसने कहा कि आप बैठिए जब वह लंच करके आएगा तो मैं आपको बता दूँगा. कुछ देर मैं बैठा रहा. कुछ दे बाद मेरे दिमाग में आया कि क्यों न मैं गाज़ियाबाद एस.एस.पी. कार्यालय में जाकर ही पता कर लूँ. अत: मैं वहाँ पर चला गया. जब मैं वहाँ पर था तो चाय आई. मुझे भी चाय दी गई और रजिस्टर देख कर पता किया गया कि कवि नगर थाने से रिपोर्ट आई है नहीं. फिर पता किया गया कि एल.आई.यू. को रिपोर्ट भेजी गई है नहीं. वहीं पर मुझे बताया गया कि 1.4.2016 को एल.आई.यू. को अग्रिम कार्यवाही के लिए आदेश दे दिया गया है. मतल्ब यह था कि उस दिन अर्थात 9.4.2016 तक एल.आई.यू. से रिपोर्ट नहीं आई थी. वहाँ पर मुझसे कहा गया कि आप 11-12.4.2016 को पता कर लीजिएगा. मैं पता करने के 13.4.2016 को गया. उस समय एल. आई. यू. से आई हुई रिपोर्ट का एक बहुत बड़ा बंडल था. सम्बंधित सिपाही ने कष्ट करते हुए पूरा बंडल चेक किया और पाया कि एल. आई. यू. से रिपोर्ट नहीं आई थी. उसी समय उसने एल. आई. यू. को फोन किया और कहा कि अगले दिन दस बजे उसकी टेबल पर रिपोर्ट आ जानी चाहिए. उसने मुझसे कहा कि आप जाइए और रिपोर्ट आते ही हम पासपोर्ट कार्यालय को भेज देंगे. मुझे सहसा विश्वास नहीं हुआ. लेकिन अगले दिन मैंने पासपोर्ट आवेदन की स्थिति चेक किया तो पता चला कि रिपोर्ट वहाँ पर पहुँच गई है.
आज जब मैंने दो सिपाहियों के बारे में खबर पढ़ी तो मुझे रहा नहीं गया और मुझे लगा कि यह उचित अवसर है कि मैं पुलिस के साथ सम्पर्क के व्यतिगत अनुभव को शेयर करूँ.

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