14 अप्रैल को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की 125 वी जयंती बडे व्यापक पैमाने पर मनायी जा रही है। खबर है की संयुक्त राष्ट्र संघ भी पहलीबार महान मानवतावादी भारत रत्न अम्बेडकर का जन्म दिवस मनायेगा! वाकई यह बेहद ख़ुशी की बात है।
आज अपने जन्म के सदी भर बाद अम्बेडकर सबसे प्रासंगिक और जीवन्त व्यक्तिव हैं जिनको लेकर भारतीय राजनीति बहुत चिंतित और सक्रिय दिखती है ,आज सभी विचारधाराओ और दलों के लिए अम्बेडकर पूज्य और अपरिहार्य बनते जा रहे हैं तथा आज कोई भी अम्बेडकर से दूरी बनाने की सोच भी नहीं सकता।
निश्चित ही मन में यह कौंधता है कि अचानक यैसा क्या हो गया कि समाज के वंचित तबके के हीरो रहे अम्बेडकर अचानक आज देश दुनिया के लिए राष्ट्रवादी और महान मानवतावादी नायक बनने की राह पर हैं ? निश्चित ही इसके पीछे बहुत तर्क तथ्य हैं।पहला तो यह कि अम्बेडकर वाकई अपने समय के महँ मानवतावादी थे,ठीक है की पहले गांधी और आज़ादी बाद फ़िर नेहरू के आभामण्डल के आगे बुद्धिजीवियों और मीडिया ने उन्हें उपेक्षित बनाये रखा ,लेकिन यदि संविधान निर्माण से लेकर, हिन्दू कोड बिल तथा उनके आर्थिक विचारों को यदि आज की कसौटी पर परखा जाये तो अम्बेडकर का कद बहुत ऊँचा हो जाता है,चाहे रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की अवधारणा हो या उद्दोगिकीकरण के समर्थन का अथवा सभी व्यक्तियों की कानून के समक्ष समानता का ,या फिर कानून के शासन का ,आज़ादी व राष्ट्र को एकजुट रखने के लिए मजबूत केंद्रीकरण तथा आर्थिक विकास के लिए अमेरिकी पूंजीवादी मॉडल का उपयोग ,सबको शिक्षा और वंचित तबको को राज्य का सहयोग मिलना यह सब उनके विचार आज हमारी सरकारोँ की नीतियों के हिस्से बन चुके हैं ,हमारे विकास के मॉडल के बड़े स्तम्भ आज अम्बेडकर के संवैधानिक और आर्थिक तथा लोकतान्त्रिक विचारो के मूर्त रूप बन चुके हैं।
आज अम्बेडकर के राष्ट्रीयता सम्बन्धी चिंतन की चर्चा भी जोरों पर है ,अम्बेडकर राष्ट्र की एकता और अखण्डता को लेकर बेहद प्रतिबद्ध थे ,उन्होंने कभी भी अलगाववादी विचारधारा को हवा नहीं दिया ,वे हालाँकि अछूतों और दलितों के लिए जीवन भर लड़ते रहे ,पर कभी उन्होंने दलितोस्थान या दलित भारत बनाने की वकालत नहीं कि ,इसके लिए उन्होंने दक्षिण के कई ब्राह्मण और सवर्ण विरोधी राजनीती से न सिर्फ किनारा किया बल्कि पेरियार जैसे द्रविण राष्ट्र की अलगाववादी राजनीती करने वालों को चेतावनी भी दी और सलाह भी।कि भारत को संविधान और लोकतन्त्र के रूप में एकजुटता से ही अक्षुण्ण रखा जा सकता है। इसलिए अम्बेडकर ने बार हिन्दू -मुसलमानो में आपस में पृथक हो जाने की स्थिति व् धमकी पर थॉट्स ऑफ़ आन पाकिस्तान में लिखा कि "मुझे यह अच्छा नहीं लगता ,जब कुछ लोग कहते हैं कि हम पहले भारतीय हैं फिर हिन्दू या मुस्लमान हैं।मुझे यह स्वीकार नहीं है,धर्म संस्कृति,भाषा,तथा राज्य के प्रतीक निष्ठा से ऊपर है - भारतीय होने की निष्ठा ! मैं चाहता हूँ कि लोग पहले भारतीय हों अंत तक भारतीय बने रहें ,भारतीय के अलावा कुछ नहीं ।
यैसा वो इसलिए कहते थे क्योंकि उनको पता था की गुलामी क्या होती है ?और उससे मुक्ति क्या होती है ?
तभी तो उन्होंने 5 फ़रवरी 1950 को सदन में बयान दिया था कि " भारत शताब्दियों के पश्चात आज़ाद हुआ है ,स्वराज्य की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।भारत में किसी भी प्रकार की फूट हमारा स्वराज्य हमसे छीन लेगी।
इस तरह के बयान आज भी अम्बेडकर को बिलकुल प्रासंगिक बना दिया है ,आज भारत में अलगाववादी प्रवृत्तियाँ फैलाई जा रही हैं ,नक्सल,बोडो,कश्मीरी, माओवादी ,अब जेहादी भी ,यह सब भारत को तोड़ने के लिए लगे हैं जिनका प्रभाव सुदूर इलाकों से लेकर जेएनयू तक मैं फ़ैल गया है यैसे में अम्बेडकर की उक्त चेतावनी बेहद निर्णायक सन्देश देती है।और इन सब पर अम्बेडकर उसी दौर में सोच लेते हैं।और इसीलिए तो वे संविधान की सर्वोच्चता की बात बार बार करते हुए सभी समस्याओं का हल उसी में ढूंढने की वकालत करते हैं जो अम्बेडकरवाद का सबसे प्रमुख पहलू माना जाना चाहिए।
आइये देखते हैं कि आज की अलगावादी प्रवृत्तियों और राज्य व् सरकार विरोधी आंदोलनों पर उनकी क्या राय है ?
अम्बेडकर ने संविधान सभा की कार्यवाहियों के आखिरी दिनों में अपने संविधानवादी लोकतान्त्रिक सोच की रूपरेखा यूँ रखी -- उन्होंने सदन में कहा की एक बार जब हम संविधान के शासन वाला संसदीय लोकतन्त्र चुन लिए हैं तो अब हमे भारत की सभी समस्यायों के समाधान के लिए संविधान में दिए संवैधानिक उपायों को ही अपनाने की जरूरत है, और असहयोग ,अनशन,आंदोलन,धरना आदि गैर संवैधानिक तरिको का इस्तेमाल करना ठीक नहीं होगा।इससे कानून का शासन लागू हो सकेगा।दरअसल अम्बेडकर बिलकुल अहिंसक और शांतिप्रिय विचरों के आधुनिक व्यक्तित्व वाले मानव थे,वे हिंसा रक्तपात और किसी तरह की गैरकानूनी गतिविधियों के खिलाफ थे।उनके मन में अमेरिका जैसा कानून का शासन था,इसीलिए वे अध्यक्षात्मक प्रणाली के भी प्रबल पक्षधर थे ,पर उनका प्रस्ताव सभा में पास न हो सका था।
इस तरह हम देखते हैं की आज का भारत जिन समस्यायों या जिन उपलब्धियों के साथ अस्तित्व में है और आगे बढ़ने के लिए तत्पर है,उन सभी पर अम्बेडकर का चिंतन बेहद व्यवहारिक और लोकतान्त्रिक मानवतावादी है।और समाधान देता है रस्ता दीखाता है।इसलिए तो अम्बेडकर का अरक्षणवाद आज दुनिया भर में अफर्मेटिव एक्शन के रूप में माना जा रहा है और अम्बेडकरवाद आज भारत की सर्वाधिक सशक्त राजनैतिक विचरधारा बन चुकी है। यही नहीं आज कम्युनिस्ट हों या राष्ट्रवादी सबको अम्बेडवाद के झंडे के नीचे आना पड़ा है।
हालाँकि अम्बेडकरवाद का मतलब पूर्णतः संविधानवाद और कल्याणकारी लोकतंत्र ही है तथापि आज अम्बेडकर की लीगेसी पर परस्पर विरोधी विचारधारा वाले लोग सिरफ दलित वोटों का राजनैतिक लाभ उठाने के लिए कब्जा करने की भी कोशिश में हैं,यही नही दलित राजनेता और चिंतक भी अंबेडकर के जातिविनाश के मिशन को समझने और आगे बढाने की जगह बस अपनी अपनी जाति के वोटबैक को एकजुट करके सत्ता मे बैठ जाना चाहते है,, जो यह दर्शाता है कि आज सच्चे अम्बेडकर वादियों की जरूरत है जो अम्बेडकर और उनके वाद को हाइजैक होने ,तोड़े मरोड़े जाने से रोकें ।अन्यथा वोटबैंक की पॉलिटिक्स अम्बेडकर का भी वही हस्र करेगी,जो गांधी,लोहिया,दीनदयाल के विचारों के साथ हो रहा है।
इन सब चुनौतियों के बावजूद भारत रत्न बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर की राष्ट्र,लोकतन्त्र, संविधानवाद,पंथनिर्पेक्षिता,मानवतावाद, आर्थिक प्रगति, बौद्ध दर्शन और सामाजिक न्याय के प्रति जो प्रतिबद्धता थी,वह हमेशा हमेशा के लिए उन्हें अमर ,प्रासंगिक और महान राष्ट्ररत्न बनाती है।तथा आधुनिक भारत के विकास और सशक्तिकरण का कोई मार्ग अम्बेडकरवाद को हटाकर नहीं निर्मित किया जा सकता।बस जरूरत है कि आज उनके सामाजिक न्याय के एजेंडे को उनके राष्ट्रिय एकता व अखण्डता के मॉडल के साथ लागू किया जाये। जय भीम ,जय भारत ।
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आज अपने जन्म के सदी भर बाद अम्बेडकर सबसे प्रासंगिक और जीवन्त व्यक्तिव हैं जिनको लेकर भारतीय राजनीति बहुत चिंतित और सक्रिय दिखती है ,आज सभी विचारधाराओ और दलों के लिए अम्बेडकर पूज्य और अपरिहार्य बनते जा रहे हैं तथा आज कोई भी अम्बेडकर से दूरी बनाने की सोच भी नहीं सकता।
निश्चित ही मन में यह कौंधता है कि अचानक यैसा क्या हो गया कि समाज के वंचित तबके के हीरो रहे अम्बेडकर अचानक आज देश दुनिया के लिए राष्ट्रवादी और महान मानवतावादी नायक बनने की राह पर हैं ? निश्चित ही इसके पीछे बहुत तर्क तथ्य हैं।पहला तो यह कि अम्बेडकर वाकई अपने समय के महँ मानवतावादी थे,ठीक है की पहले गांधी और आज़ादी बाद फ़िर नेहरू के आभामण्डल के आगे बुद्धिजीवियों और मीडिया ने उन्हें उपेक्षित बनाये रखा ,लेकिन यदि संविधान निर्माण से लेकर, हिन्दू कोड बिल तथा उनके आर्थिक विचारों को यदि आज की कसौटी पर परखा जाये तो अम्बेडकर का कद बहुत ऊँचा हो जाता है,चाहे रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की अवधारणा हो या उद्दोगिकीकरण के समर्थन का अथवा सभी व्यक्तियों की कानून के समक्ष समानता का ,या फिर कानून के शासन का ,आज़ादी व राष्ट्र को एकजुट रखने के लिए मजबूत केंद्रीकरण तथा आर्थिक विकास के लिए अमेरिकी पूंजीवादी मॉडल का उपयोग ,सबको शिक्षा और वंचित तबको को राज्य का सहयोग मिलना यह सब उनके विचार आज हमारी सरकारोँ की नीतियों के हिस्से बन चुके हैं ,हमारे विकास के मॉडल के बड़े स्तम्भ आज अम्बेडकर के संवैधानिक और आर्थिक तथा लोकतान्त्रिक विचारो के मूर्त रूप बन चुके हैं।
आज अम्बेडकर के राष्ट्रीयता सम्बन्धी चिंतन की चर्चा भी जोरों पर है ,अम्बेडकर राष्ट्र की एकता और अखण्डता को लेकर बेहद प्रतिबद्ध थे ,उन्होंने कभी भी अलगाववादी विचारधारा को हवा नहीं दिया ,वे हालाँकि अछूतों और दलितों के लिए जीवन भर लड़ते रहे ,पर कभी उन्होंने दलितोस्थान या दलित भारत बनाने की वकालत नहीं कि ,इसके लिए उन्होंने दक्षिण के कई ब्राह्मण और सवर्ण विरोधी राजनीती से न सिर्फ किनारा किया बल्कि पेरियार जैसे द्रविण राष्ट्र की अलगाववादी राजनीती करने वालों को चेतावनी भी दी और सलाह भी।कि भारत को संविधान और लोकतन्त्र के रूप में एकजुटता से ही अक्षुण्ण रखा जा सकता है। इसलिए अम्बेडकर ने बार हिन्दू -मुसलमानो में आपस में पृथक हो जाने की स्थिति व् धमकी पर थॉट्स ऑफ़ आन पाकिस्तान में लिखा कि "मुझे यह अच्छा नहीं लगता ,जब कुछ लोग कहते हैं कि हम पहले भारतीय हैं फिर हिन्दू या मुस्लमान हैं।मुझे यह स्वीकार नहीं है,धर्म संस्कृति,भाषा,तथा राज्य के प्रतीक निष्ठा से ऊपर है - भारतीय होने की निष्ठा ! मैं चाहता हूँ कि लोग पहले भारतीय हों अंत तक भारतीय बने रहें ,भारतीय के अलावा कुछ नहीं ।
यैसा वो इसलिए कहते थे क्योंकि उनको पता था की गुलामी क्या होती है ?और उससे मुक्ति क्या होती है ?
तभी तो उन्होंने 5 फ़रवरी 1950 को सदन में बयान दिया था कि " भारत शताब्दियों के पश्चात आज़ाद हुआ है ,स्वराज्य की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।भारत में किसी भी प्रकार की फूट हमारा स्वराज्य हमसे छीन लेगी।
इस तरह के बयान आज भी अम्बेडकर को बिलकुल प्रासंगिक बना दिया है ,आज भारत में अलगाववादी प्रवृत्तियाँ फैलाई जा रही हैं ,नक्सल,बोडो,कश्मीरी, माओवादी ,अब जेहादी भी ,यह सब भारत को तोड़ने के लिए लगे हैं जिनका प्रभाव सुदूर इलाकों से लेकर जेएनयू तक मैं फ़ैल गया है यैसे में अम्बेडकर की उक्त चेतावनी बेहद निर्णायक सन्देश देती है।और इन सब पर अम्बेडकर उसी दौर में सोच लेते हैं।और इसीलिए तो वे संविधान की सर्वोच्चता की बात बार बार करते हुए सभी समस्याओं का हल उसी में ढूंढने की वकालत करते हैं जो अम्बेडकरवाद का सबसे प्रमुख पहलू माना जाना चाहिए।
आइये देखते हैं कि आज की अलगावादी प्रवृत्तियों और राज्य व् सरकार विरोधी आंदोलनों पर उनकी क्या राय है ?
अम्बेडकर ने संविधान सभा की कार्यवाहियों के आखिरी दिनों में अपने संविधानवादी लोकतान्त्रिक सोच की रूपरेखा यूँ रखी -- उन्होंने सदन में कहा की एक बार जब हम संविधान के शासन वाला संसदीय लोकतन्त्र चुन लिए हैं तो अब हमे भारत की सभी समस्यायों के समाधान के लिए संविधान में दिए संवैधानिक उपायों को ही अपनाने की जरूरत है, और असहयोग ,अनशन,आंदोलन,धरना आदि गैर संवैधानिक तरिको का इस्तेमाल करना ठीक नहीं होगा।इससे कानून का शासन लागू हो सकेगा।दरअसल अम्बेडकर बिलकुल अहिंसक और शांतिप्रिय विचरों के आधुनिक व्यक्तित्व वाले मानव थे,वे हिंसा रक्तपात और किसी तरह की गैरकानूनी गतिविधियों के खिलाफ थे।उनके मन में अमेरिका जैसा कानून का शासन था,इसीलिए वे अध्यक्षात्मक प्रणाली के भी प्रबल पक्षधर थे ,पर उनका प्रस्ताव सभा में पास न हो सका था।
इस तरह हम देखते हैं की आज का भारत जिन समस्यायों या जिन उपलब्धियों के साथ अस्तित्व में है और आगे बढ़ने के लिए तत्पर है,उन सभी पर अम्बेडकर का चिंतन बेहद व्यवहारिक और लोकतान्त्रिक मानवतावादी है।और समाधान देता है रस्ता दीखाता है।इसलिए तो अम्बेडकर का अरक्षणवाद आज दुनिया भर में अफर्मेटिव एक्शन के रूप में माना जा रहा है और अम्बेडकरवाद आज भारत की सर्वाधिक सशक्त राजनैतिक विचरधारा बन चुकी है। यही नहीं आज कम्युनिस्ट हों या राष्ट्रवादी सबको अम्बेडवाद के झंडे के नीचे आना पड़ा है।
हालाँकि अम्बेडकरवाद का मतलब पूर्णतः संविधानवाद और कल्याणकारी लोकतंत्र ही है तथापि आज अम्बेडकर की लीगेसी पर परस्पर विरोधी विचारधारा वाले लोग सिरफ दलित वोटों का राजनैतिक लाभ उठाने के लिए कब्जा करने की भी कोशिश में हैं,यही नही दलित राजनेता और चिंतक भी अंबेडकर के जातिविनाश के मिशन को समझने और आगे बढाने की जगह बस अपनी अपनी जाति के वोटबैक को एकजुट करके सत्ता मे बैठ जाना चाहते है,, जो यह दर्शाता है कि आज सच्चे अम्बेडकर वादियों की जरूरत है जो अम्बेडकर और उनके वाद को हाइजैक होने ,तोड़े मरोड़े जाने से रोकें ।अन्यथा वोटबैंक की पॉलिटिक्स अम्बेडकर का भी वही हस्र करेगी,जो गांधी,लोहिया,दीनदयाल के विचारों के साथ हो रहा है।
इन सब चुनौतियों के बावजूद भारत रत्न बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर की राष्ट्र,लोकतन्त्र, संविधानवाद,पंथनिर्पेक्षिता,मानवतावाद, आर्थिक प्रगति, बौद्ध दर्शन और सामाजिक न्याय के प्रति जो प्रतिबद्धता थी,वह हमेशा हमेशा के लिए उन्हें अमर ,प्रासंगिक और महान राष्ट्ररत्न बनाती है।तथा आधुनिक भारत के विकास और सशक्तिकरण का कोई मार्ग अम्बेडकरवाद को हटाकर नहीं निर्मित किया जा सकता।बस जरूरत है कि आज उनके सामाजिक न्याय के एजेंडे को उनके राष्ट्रिय एकता व अखण्डता के मॉडल के साथ लागू किया जाये। जय भीम ,जय भारत ।
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