Tuesday, 5 April 2016

भारत माता की जय

चत्रवर्ती राज गोपालाचारी जो राजा जी या सी.आर. के नाम से भी जाने जाते थे के बारे में प्राय: वे सभी लोग जानते हैं जो अपने आपको को बुद्धि जीवी कहते है. वह इस लिए कि राजा जी भारत के अंतिम गवर्नर जनरल थे. वे कोई ऐसे वैसे व्यक्ति नहीं थे. वे एक जाने माने वकील, स्वतंत्रता सेनानी, राज्नीतिज्ञ, लेखक भी थे. आज़ाद भारत में वे गृह मंत्री भी रह चुके थे और भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किए गए थे.

गाँधी जी की हत्या पर उन्होने अपने शोक का इजहार निम्न लिखित शब्दो में किया था:-
“Bharatmata is writhing in anguish and pain over the loss. No man loved Bharatmata and Indians more than Mahatma Gandhi. Let the tragedy that was enacted in Delhi give the people of India the tune, reason, rhyme and melody for the history of their future. I pray that the history of India might be written with the rhythm and tune of the grief that Bharatmata had felt when Mahatma Gandhi fell”


किस भारत माता की बात वे कह रहे थे? प्रश्न यह है कि जिस भारत माता को राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी सबसे ज्यादा प्यार करते थे और जो भारत माता गांधी जी की हत्या पर क्षोभ और पीड़ा से कराह रही थी, उसी भारत माता की जय बोलने के खिलाफ कुछ मुट्ठी भर लोग मिडिया वालों का सहारा ले कर शोर मचा रहे हैं. क्या ऐसा करके ऐसे लोग गाँधी जी की आत्मा को ठेस नहीं पहुँचा रहे हैं? चत्रवर्ती राज गोपालाचारी की उक्त अभिव्यक्ति क्या अभी तक किसी के सामने नहीं आई होगी? अवश्य आई होगी. फिर किसी ने अब तक सवाल क्यों नहीं उठाया था कि चत्रवर्ती राज गोपालाचारी जी ने भारत माता को गाँधी जी से भी ऊपर क्यों मान लिया था? क्या चत्रवर्ती राज गोपालाचारी के कहने का तात्पर्य यह नहीं था कि गाँधी जी अपने आप को भारत माता की संतान समझते थे?


जब तक हम प्राकृतिक माँ की गोद में होते है तब तक माँ का दूध पी कर हम बढ़ते है. उसके बाद हामरा लालन पालन धरती की कोख से पैदा हुए अन्न, जल और वायु से होता है. मेरी समझ में नहीं आता कि जिस मिट्टी में हम पैदा होते है, जिस मिट्टी की उपज खा कर हम जीवित रहते है, उसे सर्वोपरि स्थान देने में किस बात का एतराज हो सकता है. यदि हम अपनी जन्म भूमि को माँ कह दें तो इसमे क्या बुराई है? कहने की जरूरत नहीं है कि हमारा अस्तित्व, हमारा विचार, हमारी आस्था, हमारा विश्वास, हमारा धर्म सब कुछ माँ की बदौलत है. अत: सबसे पहले हम माँ के सामने ही सर झुकाएगें उसके बाद ही ईश्वर, देवी और देवताओं इत्यादि का नम्बर आता है. अत: जो अपनी माँ के सामने सिर नहीं झुका सकता, माँ के प्रति कृतज्ञ नहीं हो सकता, उसको हम क्या कहेगें?


मुझे तो ऐसा लगता है कि कुछ लोगों को भारतीयता से ही परहेज है. यदि किसी बात को अंग्रेजी में कह दिया जाय तो वह शायद धर्म निरपेक्ष लगने लगता है. लेकिन उसी बात को यदि संस्कृत में कह दिया जाय तो कुछ लोगों को उसमें साम्प्रदायिकता की बू आने लगती है. ईसा मसीह दया के प्रति प्रति मूर्ति थे, इसे कौन इंकार कर सकता है. सुकरात को जो लोग जहर पिला रहे थे, सुकरात उन्हीं लोगों पर हँस रहे थे. महात्मा बुद्ध ने कहा था कि सभी कष्टों के मूल में इच्छा है-इसे कौन इंकार कर सकता है. लिओ टॉलस्टॉय के बारे में हम जानते थे कि वे गाँधी जी के आध्यामिक गुरू थे. यदि कोई हिंदू कहता है कि चूकि ईशा मसीह सुकरात, लिओ टॉल्टॉय हिंदू नहीं थे अत: उनकी बातें मानने लायक नहीं है तो क्या उसका ऐसा कहना उचित होगा. इसी तरह से यदि कोई बात संस्कृत में कही गई है, या जो बात मोहन भागवत जी कहते है उसे इस आधार पर खारिज करना कहाँ तक उचित है कि वे सभी बातें साम्प्रदायिक है. हाँ यदि मोहन भागवत जी यह कहते है कि सिर्फ हिंदुओं से प्रेम करो और बाकी लोगों से नफरत तो उनकी बाते कतई बर्दास्त के काबिल नहीं. हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, दक्षिण पंथी, वाम पंथी -कोई भी यदि भारत माता से अपने को , अपने धर्म, अपनी आस्था और विश्वास को भारत और भारत के प्रतीक से ऊँचा समझता है तो वह देश का अपमान करता है. मगर वाह! रे हमारे देश के बुद्धि जीवी और मिडिया वालें! जो लोग गला फाड़ फाड कर चिल्ला रहे हैं कि पूरी धरती माँ है. धरती पर जितने लोग हैं वे एक ही कुटुम्ब हैं. जिन लोगों को ऐसे बुद्धि जीवी जिन्हें सामप्रादायिक कहते हैं वे गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाते हैं कि “वसुधैव कुटुम्बक्म”, “सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामहा”. इसमे नफरत की कहाँ गुंजाईश है भाई? इसमे साम्प्रदयिकता की कहाँ गुंजाइश है भाई? इसमे में संकीर्णता कहाँ है? लेकिन यह बात हमारे देश के तथा कथित बुद्धिजीवियों को सुनाई नहीं देता.


हम सभी भारत माता की संतान हैं. यदि मैं कहता हूँ कि सम्विधान में कहीं नहीं लिखा है कि मैं अपनी माँ और पिता का आदर करू, अपने माँ बाप को अपने से बड़ा समझूँ, और यह सुन कर मेरा भाई व्यथित हो उठता है और आक्रोश व्यक्त करता है, तो क्या कहा जा सकता है वह गलत है और मैं सही हूँ? इसी तरह से यदि मै भारत माँ का अपमान करता हूँऔर हमारा भाई व्यथित हो जाता है और व्यथित हो कर भारत माता की आन बान शान की खातिर आक्रोश में कुछ कह बैठता है, तो बजाय आत्मावलोचन करने के बजाय मैं अपने उस भाई के पीछे ही लट्ठ ले कर पड़ जाऊँ तो यह कहाँ तक उचित है. मैं समझता हूँ कि तथाकथित बुद्धि जीवी और मिडिया यही काम कर रहे है. तथाकथित बुद्धि जीवी और मिडिया अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए ऐसे लोगों को प्रमुख स्थान दे रहे हैं और इस तरह से वे भारत माता के साथ अन्याय कर रहे हैं. ऐसे करके तथाकथित बुद्धि जीवी और मिडिया भारत माता को प्यार करने वाले सपूतों के जले पर नमक छिडकने का काम कर रहे है. ऐसे सपूतों के पीछे लट्ठ ले कर दौड़ रहे है. तथा- कथित बुद्धि जीवी मित्रों, हमें तो आपकी बुद्धि पर ही तरस आता है. देश से बढ़ कर न कोई मान्यता है न कोई धर्म. माता से बढ़ कर कोई नहीं है. हमारा सम्विधान मूलत: भारत माता की रक्षा और उनके संतानों की रक्षा के लिए है. भारत माता के संतानों को उचित संस्कार की जरूरत है. माँ और भारत माँ का मजाक उड़ाना बंद करों. पढ़े लिखे होने का मतलब यह नहीं कि तुम अपनी बेजुबान और खामोश माँ का अनादर करों. याद रखो: “जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”. देश के तथा कथित बुद्धि जीवी मित्रों और मिडिया वाले आप लोग अपनी शक्ति का बेजा इस्तेमाल मत करो. राम और रावण दोनों शक्ति शाली थे. रावण तो शायद राम से ज्यादा विद्वान था लेकिन घमंडी था. उसने अपने तपो बल और बुद्धि का बेजा इस्तेमाल किया था. बुद्धि जीवी मित्र और मिडिया वाले, आप लोग कृपया वह काम मत करो जो रावण ने किया था.

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