“भारत माता की जय” और “ व्याख्या - भारत माता, बंदे मातरम इत्यादि का” शीर्षकों से मैंने क्रमश: 4 अप्रैल और सात अप्रैल को दो पोस्ट लिखे हैं. उनमें मैंने वही लिखा है जो मैं महसूस करता हूँ. मैंने जो कुछ लिखा है उसका मतलब यही है कि हमें हर चीज को कानून के तराजू पर नहीं तौलना चाहिए बल्कि यह देखना चाहिए कि कोई भी परम्परा, मान्यता, शब्द, संकेत मानवता के हक में है कि नहीं. यदि हमें लगता है कि इनमें से कोई भी चीज मानवता के खिलाफ है तो उसमेन परिवर्तन करने की कोशिश करनी चाहिए.
भारत नाम देश या राष्ट्र कभी था कि नहीं इसका सवाल ही नहीं उठना चाहिए.यदि हम बचपन से यह मान कर चले है कि भारत एक राष्ट्र था और ऐसा मानकर कहते है कि राष्ट्र से बढ़ा कोई नहीं है तो इससे भारत की एकता को खतरा कहाँ पैदा होता. क्या इसमें यह सम्देश छिपा नहीं है कि जब भारत राष्ट्र की भारत करते है तो हमारा मतलब भारत में रहने वाले समस्त लोगों से है. जब हम राष्ट्र ध्वज के सम्मान की बात करते है तो क्या हमारा मतलब भारत में रहने वाले सभी लोगों के सम्मान से नहीं हैं? यदि हम भारत माता की रक्षा की बात करते है तो क्या धरती के उस भूभाग की बात नहीं करते हैं जिस पर हम जन्म लेते है, जिससे हमारा भरण पोषण होता है और जिसकी मिट्टी में मरने के बाद हम समा जाते है? क्या ऐसी भावना से हमारी एकता मजबूत नहीं होती? तो फिर इन पर सवाल क्यों खड़ा हो जाता है?आखिर यह सवाल किसने खड़ा किया? क्या हमारे देश के बुद्धिजीवियों, मिडिया वर्ग और कुछ संकीर्ण और निहायत स्वार्थी नेताओं को मालूम नही हैं? सबको मालूम है. मगर अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ऐसी पवित्र भावना को भी ये सब विवादास्पद बना रहे हैं. हमने कभी सोचा भी नहीं था कि “भारत माता की जय” और “वदे मातरम” जैसे पवित्र नारों की भी चीड़ फाड़ की जायेगी. हमने कभी नहीं सोचा था कि देश भक्ति और राष्ट्रीयता का भाव भरने वाले इन नारों को भी कुछ लोग विवादास्पद बना देगें.
सबको मालूम है कि भारत माता की भावना को मजबूत करने के उद्देश्य से हमारे देश की एक मशहूर संस्था के प्रमुख ने भारत माता की जय को राष्ट प्रेम से जोड़ दिया. उस सस्था कुछ लोगों को घृणा है. स्वाभाविक है कि उसके प्रमुख यदि सही बात भी कहेंगे तो ऐसे लोगों को जो उस संस्था से घृणा करते हैं उनकी बातों में भी खोट नजर आएगी. यही बंदे मातरम और भारत माता को ले कर हुआ है.
एक महाशय जी जो उस संस्था से बेहद घृणा करते है और उस संस्था के खिलाफ हमेशा जहर उगलते रहते हैं ने यह कहते हुए जहर फैलाना शुरू कर दिया कि यदि उनकी गर्दन पर चाकू भी रख दी जाय तो वे भारत माता की जय नहीं बोलेंगे.वे महाशय जी शब्दो के धनी है, ओजस्वी और प्रभाव शाली भाषण भी देते है. मिल गया मिडिया और हमारे देश के तथाकथित बुद्धि जीवियों को खुराक. बना दिया ऐसे पाक शब्दों को विवादास्पद!
मुझे टाइम्स ऑफ इंडिया में एक सम्पादकीय पढ़ कर ऐसा लगा कि मिडिया वालों के बारे में मेरी जो धारना है काफी हद तक ठीक है. कहने की आवशयता नहीं है कि किसी भी अखबार का सम्पादकीय उस अखबार की सोच की तरफ इशारा करते है. आज अर्थात 8.4.2016 की सम्पाकीय का शीर्षक है: “Take It Easy. For Bharat Mata’s Sake, BJP must sheath its patriot missile”. टाइम्स ऑफ इंडिया बी.जे.पी. को सलाह दे रहा है कि बी.जी.पी. इस मसले को गम्भीरता से न ले. भारत बी.जे.पी. को भारत माता की भलाई के लिए देश भक्ति की मिसाइल को म्यान के अंदर रख देना चाहिए.
सवाल यह है कि भारत माता या वदे मातरम को बी.जी.पी. से जोड़ कर टाइम्स ऑफ इंडिया देश का कितना बड़ा नुक्सान कर रहा है इसका आकलन करना मुश्किल है. वह इस लिए कि भारत माता या वंदे मातरम का संबन्ध सिर्फ बी.जे.पी. से नहीं है इसका संबंध उन लोगों से भी है जो बी.जे.पी. के साथ नहीं है. दुर्भाज्ञ से यह सम्पादकीय यह संदेश देता है कि भारत माता या वदे मातरम का सम्बंध सिर्फ और सिर्फ बी.जे.पी. से है. जबकि भारत माता और वदे मातरम का संबंध समूचे देश वासियों से है.
सम्पादकीय में अपने तर्क को मजबूती प्रदान करने के लिए हिंदी और ईंग्लिश में भाषाओं को ले कर देश में जो तनाव उत्पन्न हो गया था उसका उदाहरण दिया गया कि किस तरह से हिंदी का वर्चस्व कायम करने का फैसला सरकार को वापस लेना पड़ा था. दिव्य दृष्टि रखने वाले इतने बड़े सम्पादक महोदय को एक विशालकाय अन्तर दिखाई नहीं देता कि हिंदी तमिलनाडु में नहीं बोली जाती और इसी लिए उसका विरोध हुआ. लेकिन भारत माता, वंदे मातरम के साथ तो ऐसा नहीं है. हिंदुस्तान के किसी भी प्रांत का वासी हो वह देश भक्त अपनी माँ से प्यार करता है. हिंदी से जुड़ी भावना और देश भाक्ति से जुड़ी भावना को एक तराजू पर नहीं रखा जा सकता.
सम्पादकीय में एक और बात बेहद आपत्ति जनक लिखी गई है. भारत और किसी दूसरे देश के बीच क्रिकेट मैच में यदि कोई वर्ग दूसरे देश चाहे वह पाकिस्तान तो या कोई और के लिए तालियाँ बजाता है, ऐसी घटना को भी वे छोटी सी घटना मानते है. मतलब यह है कि यदि भारत वेस्ट इंडीज से हार जाता है, भारत के कुछ मुट्टी भर लोग भारत के खिलाफ नारे बाजी करते हैं, पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाते है, पाकिस्तान का झंडा फहराते हैं तो यह बुद्धिजीवी, विद्वान और प्रकांड पंडित सम्पादक महोदय के लिए बेहद छोटी घटना है. उनके हिसाब से यदि देखा जाय तो ऐसे लोग भी भारत का सपूत कहला सकते है.
माफ कीजिए सम्पादक महोदय! मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल देश के लोगों को जोड़ने के लिए कर रहा हूँ तोड़ने के लिए नहीं. आपका लेखन समाज में दुराव पैदा कर रहा है. कृपा करके जाति, धर्म. भाषा, क्षेत्र इत्यादि सकीर्ण अवधारणाओं का ढ़िढ़ोरा पीट कर अपने लाभ के लिए हमें मत बाँटिए. अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल आप राष्ट प्रेम को बढ़ावा देने के लिए करे. भारत माता और बदे मातरम को किसी धर्म विशेष या पार्टी विशेष से न जोड़ कर भारत की समस्त जनता से जोड़ने का काम करें. धन्यबाद!
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