Friday, 25 March 2016

आह्वान -नैतिक शिक्षा अभियान के लिए


मित्रों, मैं महसूस करता हूँ कि हमारे देश में जिस तरह की शिक्षा दी जा रही है उसमें परिवार, समाज और राष्ट के प्रति कर्तव्य परायणता जागृत करने का प्रयास लेस मात्र है. परिणाम स्वरूप किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व में उक्त मूल भूत गुणों का प्राय: अभाव देखने को मिलता है. दर असल व्यक्ति के विकास को उसके बौद्धिक विकास और उसके आधार पर भौतिक विकास तक ही सीमित हो जाता है. जबकि विकास का स्वरूप ऐसा होना चाहिए कि व्यक्ति मात्र भौतिक और बौद्धिक रूप से ही समपन्न न हो कर नैतिक रूप से भी सम्पन्न हो. दुर्भाग्य से सिर्फ भौतिक और बौद्धिक सम्पनाता हासिल करने पर ही हमारा विकास केंद्रित है. इसी का परिणाम यह है कि भौतिक और बौद्धिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की पीड़ा से अप्रभावित रहता है. दूसरे व्यक्ति से मेरा मतलब सिर्फ गैर ही नहीं बल्कि ऐसे व्यक्ति से भी है जिससे भौतिक और बौद्धिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति का खून का रिश्ता है- जैसे कि बुजुर्ग दादा -दादी, माँ -बाप, अपहाहिज भाई -बहन, घर की कोई विधवा इत्यादि.
 मैं यह तो नहीं कह सकता कि मेरा आँकलन सही है या गलत लेकिन मुझे लगता है आज का भौतिक और बौद्धिक रूप से विकसित और शिक्षित व्यक्ति या तो अपने आप तक सीमित है या अधिक से अधिक अपने बीवी बच्चों तक. क्या यह सही है? मुझे नहीं लगता. मैं तो महसूस करता हूँ कि शिक्षा में नैतिकता का समावेश न होने के कारण भौतिक और बौद्धिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति ऐसी व्यवस्था का निर्माण कर रहा है जिसे हम जंगल की व्यवस्था कह सकते हैं. जंगल के शेर की ताकत सिर्फ शेर के लिए होती है किसी अन्य जीव जंतु के लिए नहीं. चीते की फूर्ती उसके काम आती है किसी और जीव जंतु के लिए नहीं. गीदड़ की चलाकी भी खुद उसके लिए होती है, किसी और के लिए नहीं. हाँ इतना अवश्य है कि ये सभी जानवर अपने बच्चों की फिक्र अवश्य करते है. क्या ऐसा नहीं लगता कि भौतिक और बौद्धिक रूप से सम्पन्न्ता का विभिन्न स्तर हमें जानवरों की तरह ही व्यवहार करने में सहायक है. कुछ ही लोग ऐसे है जो भौतिक और बौद्धिक रूप से सम्पन्न हो कर भी वे दूसरों के बारे में सोचते है, उनकी पीड़ा को महसूस करते है , एक हद तक उनकी पीड़ा को कम करते हैं. ऐसे लोगों के अन्दर जो यह भाव आया है वह शिक्षा की बदौलत नहीं बल्कि सस्कार की बदौलत है.
मैं एतद्द्वरा अपने मित्र गणों का आह्वान करता हूँ कि कृपया आप अपना विचार- चाहे समर्थन में हो या विरोध में प्रकट करे ताकि मेरा मार्ग प्रसस्थ हों. मुझे आपके मदद की बेहद आवश्यकता है क्योंकि मैं चाहता हूँ कि सीमित स्तर पर ही सही लेकिन आगे कदम बढ़ाऊँ. जब तक आप हमारा मार्ग दर्शन नहीं करेंगे मुझे पता नहीं चल पाएगा कि जो मैं सोच रहा हूँ वह किस हद तक प्रयोग में लाने योग्य है और मेरी दिशा सही है.



धन्यबाद!

No comments:

Post a Comment