Monday 12 December 2016

Aaj ki baat

मित्रों इस संसार में सब को खुश करना असम्भव है. जो क्रांतिकारी होता है वह रास्ता खुद बनाता है. मुकाम तक पहुँचने के लिए उसे सहयोग की आवश्यकता अवश्य होती है. लेकिन यदि सहयोग नहीं मिलता, लोग उसके मक़सद को नहीं पाते, सहयोग की जगह उस क्रांतिकारी पर पत्थर बरसाते है, उसे ज़हर पिलाते है सूली/फाँसी पर लटकाते है फ़िर भी उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता. वह आगे बढ़ता चला जाता है. इस लिए कि उसे विश्वास होता है कि वह जो कुछ कर राहा है अपने लिए नहीं बल्कि उन लोगों के जिनकी आँखो पर पट्टी बँधी है और उन्हें पता नहीं है कि वे कहाँ भटक रहें है. ऐसे क्रांति कारी गाली सुनेंगे , पत्थर खाएंगे, ज़हर पीयेंगे , सूली पर चढेगे लेकिन गाली देने वालों, पत्थर मारने वालों, ज़हर पिलाने वालों, सूली पर चढाने वालों के प्रति कुत्सित भाव नहीँ रखेंगे. एक कहावत है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है लेकिन माता कुमाता नहीँ हो सकती. महात्मा बुद्ध ने पत्थर खाये , ईसा मसीह को सूली पर चढ़ा दिया गया, सुकरात को ज़हर का प्याला दिया गया, राजा राम मोहन रॉय गालियाँ सुनते रहें लेकिन सती प्रथा के अंत के लिए समर्पित रहें, लेकिन इन क्रान्ति कारियों के चेहरे पर ज़रा सी भी शिकन नहीं आई. जब भी परिवर्तन होता है परिवर्तन कर्ता को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. परिवर्तन वही लाता है जिसके अंदर मुसीबतों को झेलने का साहस होता है. हमें मुफ्त और खैरात की आदत पड़ चुकी है. आज तक हमारी इस कमजोरी का कुछ चतुर लोग फायदा उठाते रहें है. नोट बंदी चतुराई का काम नही है यह जोखिम भरा काम है. यह लोक लुभावन वाला फैसला नहीं है. यह फैसला अपने आप में अद्वितीय है. अच्छी नियत से लिए गये फैसले का परिणाम अच्छा होगा ऐसा मुझे लगता है. इसका अहसास हमें तभी होगा जब हम राजनीति के चश्मे से इसे न देखे.

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