गुरुर्बह्मा गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर:, गुरुर्साक्षात परम ब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः
ध्यान मूलं गुरुर्मूर्ति, पूजा मूलं गुरुर्पदम्, मंत्र मूलं गुरुर्वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरुर्कृपा
ध्यान मूलं गुरुर्मूर्ति, पूजा मूलं गुरुर्पदम्, मंत्र मूलं गुरुर्वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरुर्कृपा
आज शिक्षक दिवस है. शिक्षक दिवस समस्त विश्व में मनाया जाता है. विभिन्न देशों में यह दिवस विभिन्न तिथियों को मनाया जाता है. शिक्षक दिवस के दिन शिष्य अपने शिक्षकों को याद करते हैं और उन्हें विभिन्न तरीकों से सम्मानित करते हैं. हमारे देश में यह दिवस डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन दिवस अर्थात पाँच सितम्बर को मनाया जाता है.
संसार में कोई भी ऐसा नहीं है जिसके व्यक्तित्व के निर्माण में उसके शिक्षकों का योगदान न हो. दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद भी हमारे देश में ऐसे वातावरण का निर्माण नहीं हुआ जिसमें शिक्षक अपने आप को उपेक्षित महसूस करते है. मैं उन गिने चुने शिक्षकों की बात कर रहा हूँ जो अपने मन वचन और कर्म से शिक्षक हैं. मैं उन तथाकथित शिक्षकों की बात नहीं कर रहा हूँ जो हड़ताल करते हैं और अपने अधिकारों की माँग करते हुए सड़क पर उतर आते हैं. मैं उन तथाकथित शिक्षकों की बात नहीं कर रहा हूँ जिन्होंने ने अपने हित के लिए संगठन बना रखा है और जो अपने वचन और कर्म से विद्वान कम राजनीतिक अधिक पैदा करते हैं. यह दिवस उन तथाकथित शिक्षको को समर्पित नहीं है जिन्होंने शिक्षा संस्थानों को राजनीति का अखाड़ा बना दिया है. ऐसे शिक्षक मेरे हिसाब से शिक्षक के नाम पर कलंक है.
क्या ऐसा तथाकथित शिक्षक सम्मान पाने के अधिकारी है जो घर बैठे वेतन लेते हैं. मुझे कहने में संकोच नहीं है कि आज हमारे देश में अपवाद स्वरूप ही शिक्षक बचे हैं और जो हैं भी उन्हें कभी मौका नहीं मिलता कि वे समाज को रास्ता दिखाएं. आज हमारे देश में यदि किसी वर्ग को सबसे अधिक सम्मान मिलता है तो वह वर्ग यकीनन शिक्षक नहीं है. वह राजनीतिज्ञों वर्ग है. परिणाम स्वरूप रोजगार के नाम पर भले ही कोई शिक्षक बन जाय, लेकिन सम्मान और इज्जत के लिए व्यक्ति किसी दूसरे क्षेत्र का चयन करता है. सम्मान और इज्जत के लिए कोई शिक्षक नहीं बनना चाहता.
शिक्षक प्रतिभावान और विद्वान होता है. समाज का चेहरा यदि कोई बदल सकता है तो वह शिक्षक है. लेकिन आज के दिन शिक्षकों का अकाल है. हमारे सामने जो भी दिखाई देता है वह शिक्षक कम वेतन भोगी कर्मचारी अधिक है.
निजी क्षेत्र के विद्यालयों की निम्न कक्षाओं में तो फिर भी गनीमत है लेकिन विश्वविद्यालय स्तर के शिक्षकों का चरित्र कैसा है, इसका जीता जागता उदाहरण दिल्ली का एक विश्वविद्यालय है. जिस विश्वविद्यालय के छात्र अपने आपको शिक्षक से भी बड़ा समझते हो, शिक्षक का मजाक उड़ाते हों, देश द्रोह का नारा लगाने को अभिव्यक्ति की आज़ादी बताते हो, जिस विश्व विद्यालय के छात्र जाति और धर्म के नाम पर बटे हुए हों और राजनीतिज्ञों द्वारा पोषित हो, उस विश्वविद्यालय के और उसी तरह के अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के बारे में क्या कहा जा सकता है. आज अधिकाँश विश्वविद्यालय राजनीति का आखाड़ा बन गए हैं. इन विश्वविद्यालयों से शोध कर्ता और विद्वान कम, राजनीतिक और नौकर शाह अधिक निकलते है. यही कारण है कि हमारे देश के विश्वविध्यालय विश्व में कहीं नहीं ठहरते. आवश्यकता इस बात की है कि देश में इस तरह के महौल का निर्माण हो कि सबसे अधिक सम्मान शिक्षकों को मिले ताकि शिक्षक बनना हर आदमी का सपना हो. काबिले गौर है कि ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब की सबसे बड़ी इच्छा यह थी कि वैज्ञानिक और राष्ट्रपति से अधिक उन्हें शिक्षक कहलाना अधिक पसंद था.
संसार में कोई भी ऐसा नहीं है जिसके व्यक्तित्व के निर्माण में उसके शिक्षकों का योगदान न हो. दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद भी हमारे देश में ऐसे वातावरण का निर्माण नहीं हुआ जिसमें शिक्षक अपने आप को उपेक्षित महसूस करते है. मैं उन गिने चुने शिक्षकों की बात कर रहा हूँ जो अपने मन वचन और कर्म से शिक्षक हैं. मैं उन तथाकथित शिक्षकों की बात नहीं कर रहा हूँ जो हड़ताल करते हैं और अपने अधिकारों की माँग करते हुए सड़क पर उतर आते हैं. मैं उन तथाकथित शिक्षकों की बात नहीं कर रहा हूँ जिन्होंने ने अपने हित के लिए संगठन बना रखा है और जो अपने वचन और कर्म से विद्वान कम राजनीतिक अधिक पैदा करते हैं. यह दिवस उन तथाकथित शिक्षको को समर्पित नहीं है जिन्होंने शिक्षा संस्थानों को राजनीति का अखाड़ा बना दिया है. ऐसे शिक्षक मेरे हिसाब से शिक्षक के नाम पर कलंक है.
क्या ऐसा तथाकथित शिक्षक सम्मान पाने के अधिकारी है जो घर बैठे वेतन लेते हैं. मुझे कहने में संकोच नहीं है कि आज हमारे देश में अपवाद स्वरूप ही शिक्षक बचे हैं और जो हैं भी उन्हें कभी मौका नहीं मिलता कि वे समाज को रास्ता दिखाएं. आज हमारे देश में यदि किसी वर्ग को सबसे अधिक सम्मान मिलता है तो वह वर्ग यकीनन शिक्षक नहीं है. वह राजनीतिज्ञों वर्ग है. परिणाम स्वरूप रोजगार के नाम पर भले ही कोई शिक्षक बन जाय, लेकिन सम्मान और इज्जत के लिए व्यक्ति किसी दूसरे क्षेत्र का चयन करता है. सम्मान और इज्जत के लिए कोई शिक्षक नहीं बनना चाहता.
शिक्षक प्रतिभावान और विद्वान होता है. समाज का चेहरा यदि कोई बदल सकता है तो वह शिक्षक है. लेकिन आज के दिन शिक्षकों का अकाल है. हमारे सामने जो भी दिखाई देता है वह शिक्षक कम वेतन भोगी कर्मचारी अधिक है.
निजी क्षेत्र के विद्यालयों की निम्न कक्षाओं में तो फिर भी गनीमत है लेकिन विश्वविद्यालय स्तर के शिक्षकों का चरित्र कैसा है, इसका जीता जागता उदाहरण दिल्ली का एक विश्वविद्यालय है. जिस विश्वविद्यालय के छात्र अपने आपको शिक्षक से भी बड़ा समझते हो, शिक्षक का मजाक उड़ाते हों, देश द्रोह का नारा लगाने को अभिव्यक्ति की आज़ादी बताते हो, जिस विश्व विद्यालय के छात्र जाति और धर्म के नाम पर बटे हुए हों और राजनीतिज्ञों द्वारा पोषित हो, उस विश्वविद्यालय के और उसी तरह के अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के बारे में क्या कहा जा सकता है. आज अधिकाँश विश्वविद्यालय राजनीति का आखाड़ा बन गए हैं. इन विश्वविद्यालयों से शोध कर्ता और विद्वान कम, राजनीतिक और नौकर शाह अधिक निकलते है. यही कारण है कि हमारे देश के विश्वविध्यालय विश्व में कहीं नहीं ठहरते. आवश्यकता इस बात की है कि देश में इस तरह के महौल का निर्माण हो कि सबसे अधिक सम्मान शिक्षकों को मिले ताकि शिक्षक बनना हर आदमी का सपना हो. काबिले गौर है कि ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब की सबसे बड़ी इच्छा यह थी कि वैज्ञानिक और राष्ट्रपति से अधिक उन्हें शिक्षक कहलाना अधिक पसंद था.
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