अश्लीलता , आखिर है क्या ? कौन देगा इसका जवाब ? फिल्म जगत या एलेक्ट्रॉनिक मिडिया जिनका काम सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना है, राजनीतिक गण जिनका काम येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करना है, स्वछंद प्रकृति के लेखक जिनके लिये अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता ही सब कुछ हैं, वकील या न्यायपालिका जिनका काम सिर्फ कानून की व्याख्या करना है ? मैं समझता हूँ कि एक स्वस्थ समाज के लिये हर मामले मॆं एक लक्ष्मण रेखा होती है. यदि समाज का कोई अवयव उस लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करता है तो वह समाज को कमजोर करता है. सवाल यह है कि कौन बताएगा हमें कि आखिर वह लक्ष्मण रेखा कौन सी है ? समाज के ऊपरि वर्णित अवयवों के पास इसका सरल जवाब है. जवाब यह है कि हमारे संविधान में और देश के कानून मे जो प्रतिबंध है वही लक्ष्मण रेखा है. ऊपरि वर्णित अवयवों के अनुसार संविधान और देश के कानून में व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है अतः व्यक्ति अपने व्यक्तिगत आनंद के लिऐ कुछ भी करने के लिऐ आजाद है. उसको इससे कोई लेना देना नहीँ है कि उसकी आजादी का दूसरे पर क्या पड़ रहा है. उदाहरण स्वरूप यदि दो पडोसियो मे से एक के घर में मातम है और दूसरा पडोसी अपने घर मे तेज म्यूज़िक पर डाँस कर सकता है तो संविधान और कानून में इसके लिऐ कहीं रोक टोक नहीं है. मुझे लगता है कि यह एक स्वस्थ समाज की निशानी नहीं है. दूसरे शव्दो में कहा जा सकता है कि मात्र संविधान के अनुसार आचरण करके और कानून का पालन करके एक स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं हो सकता. उसके लिऐ मानवीय संवेदनाओं का विकास होना आवश्यक है.
कंगना रानौट द्वारा उड़ता पंजाब पर व्यक्त किए गये विचार ने मुझे ऊपरोक्त टिप्पणी करने के लिऐ विवश किया. उनके अनुसार ब्रा का प्रदर्शन करने में कोई अश्लीलता नहीं है. मुझे लगता है कि फिल्म जगत एक मायावी दुनियाँ में सोता है और जागता है. उसके लिये समाज का मतलब एक व्यक्ति केंद्रित भीड़ है. उसके लिऐ समाज का मतलब मात्र एक मेला है. फिल्म जगत की रचनात्मकता समाज के लिऐ नहीँ बल्कि व्यक्ति के लिऐ है. उसके लिऐ दर्शक का मतलब परिवार नहीँ बल्कि व्यक्ति है. ऐसी फिल्में और धारावाहिक हमारे सामने परोसे जाते है कि हम अपनी बेटी, बहन, माँ, और बच्चों के साथ नहीं देख सकते. और यह सब अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर होता है. हो सकता है कि मेरा सोचना गलत हो मगर मुझे लगता है कि संविधान और कानून के होते हुए और शिक्षित लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी के बावजूद भी समाज में दिनो दिन अव्यवस्था फैल रही है. उसका कारण यही है कि सामाजिक मूल्यों के विकास के बारे में किसी को सोचने की ज़रूरत ही नही है. क्या कंगना रानौत भारतीय समाज की प्रतिबिम्ब है? मैं समझता हूँ कि उन्होंने भारत को देखा ही नही होगा या देखा भी होगा तो अपने व्यवसाय के हक में सामाजिक मूल्यों को जान बूझ कर तिलाँजली दे दी होगी.अंत में यही कहना है कि लक्ष्मण रेखा का निर्धारण व्यक्ति को ध्यान में रख कर नहीं बल्कि परिवार और समाज को ध्यान में रख कर होना.
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