Sunday, 31 July 2016

मनोविज्ञान, परम्परा, प्रचलन और कर्मकांड कांड का: भाग-1


मुझे मालूम है कि इस शब्द से बहुत लोगों को चिढ़ है. चिढ़ क्यों हैं, इस पर मैं इस समय कुछ नहीं कहना चाहता. बस मैं इतना कहना चाहता हूँ, कुछ अपवादों को छोड़ कर सभी लोग किसी न किसी रूप में कर्मकांड का उपयोग करते हैं. उन्हें अपने जैसे लोगों का कर्म कांड तो उचित लगता है, मगर दूसरे द्वारा किया गए कर्मकांड में उन्हें किसी तरह की सार्थकता नहीं दिखाई देती. 
मेरा यह मानना है कि कोई भी कर्मकांड अपनी उत्पत्ति के समय सार्थक रहा होगा. उसकी सार्थकता समय और स्थान के साथ खत्म हो जाती है. जैसे कि जो कर्म कांड कभी गावों में सम्पन्न होता था वह शहर के लिए आज के दिन सार्थक नहीं है. क्यों सार्थक नहीं? इसका जवाब भी संक्षेप में देना सम्भव नहीं है. इस लिए मैं उसका मैं इस अवसर पर जवाब नहीं देना चाहता. मेरा सिर्फ यह कहना है कि किसी भी कर्म कांड की सार्थकता पर विचार किए बिना आलोचना करने का हमें कोई अधिकार नहीं है. 
प्राय: सभी लोग जानते है कि अधिकांश कर्मकांडों की उत्पत्ति गाँवों में हुई थी. मेरा लालन पालन गाँव में हुआ है. मेरा शहरी जीवन अड़तीस वर्ष का है. मुझे शहर और गाँव का दोनों का विस्तृत अनुभव है. आज भी गाँव से मेरा सम्बंध बना हुआ है. इस लिए मैं कह सकता हूँ कि मेरे पास दोनों दृष्टि है गाँव की भी और शहर की भी. मैं यह भी कह सकता हूँ कि मेरी दृष्टि गाँव से शहर तक व्यापक है. मेरी ही नहीं बल्कि मेरी जैसे उन तमाम लोगों की दृष्टि गाँव से शहर तक व्यापक है जिनका लालन पालन गाँव में हुआ है मगर वे शहर में एक लम्बे समय से रह रहे हैं.
शुक्रवार को मेरे बहुत ही करीबी महिला का निधन हो गया. उनका निधन मोहन नगर में हुआ. वे 72 वर्ष की थी. कुछ दिनों पहले ही वे गाँव से अपने बेटे के यहाँ आई थी. मुझे जब सूचना मिली तो मैं गया. मैंने उनका अंतिम दर्शन करने के लिए उनके पार्थीव शरीर से वस्त्र हटाया. जब मैंने उनका चेहरा देखा तो मेरी आँखों में आँसू आ गये. यदि मैं उस दिन उन्हें नहीं दिखता तो मैं उनको भूल नहीं पाता. जब भी मैं गाँव जाता, मेरी नजरें उन्हें खोजती. लोग कहते कि जिसको मैं खोज रहा हूँ अब वे इस दुनियाँ में नहीं हैं, फिर भी मेरा दिल नहीं मानता. क्योंकि मेरे मन पर उनका जो अक्श था वह एक चलती फिरती महिला का था. वे नहीं मिलती तो मैं बेचैन रहता. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. मैं शाँत हो गया हूँ. मैंने उनके सदा के लिए खामोश चेहरे को अपनी आँखों देख लिया है. मेरी आँखों से आँसू बह चुके है. मनोविज्ञान के अनुसार आँसू गिर जाने के बाद मन हल्का हो जाता है. मेरी तरह जिन सगे सम्बंधियों ने उन्हें देखा और उनके आँसू निकल गए, वे भी कुछ हद तक सामान्य हो जाएंगे. समय समय पर आँसू निकलते रहेंगे सभी लोग सामन्य होते रहेंगे. 
आदमी के लिए व्यस्त रहना जरूरी है. अन्यथा तन्हाई में उसने जो पाया है उसको याद करके खुश कम होता है, जो खोया है उसको याद करके दु:खी बहुत होता है. किसी सागे सम्बंधी की मृत्यु के बाद जो कर्मकाँड किए जाते है उनकी सार्थकता मुझे यही पर नजर आती. किसी व्यक्ति के गुजर जाने पर उसका जो सबसे करीबी होता है उसी को सबसे ज्यादा दु:ख होता है. यदि वह खाली रहेगा तो उसने जिसको खोया है उसे भूल नहीं पाएगा. इसी लिए उसे ऐसे कर्मकाँडो में जकड़ दिया जाता है कि उसका ध्यान अपने दिवंगत करीबी के हट जाता है और कर्म काँड को सम्पन्न करने में लगा रहता है. लगभग दो हप्ते तक उसे तपस्वी का जीवन व्यतीत करना होता है. अपने करीबी की आत्मा की शाँति के लिए उसे कष्ट सहना उसे अच्छा लगता है. दो हप्ते बाद जब वह सामन्य जीवन चर्या आरम्भ कर देता है तो उसकी स्मृति में उसके दिवंगत करीबी की याद उसे कष्ट देती है उसके लिए की गई दो हप्ते की तपस्या उस कष्ट को कम कर देती है. कर्मकांड की सार्थकता मुझे उस समय नजर आई थी जब मेरी माँ और पिता जी के स्वर्गवास के उपरांत मुझे कठिन साधना से गुजरना पड़ा था. 
कावड़ियों की वजह से शव वाहन नहीं मिल पाने की वजह से हम लोगों को शव ले कर पैदल ही मोहन नगर से हिंडन आना पड़ा था. जिन चार लोगों ने शव को कंधे पर उठाया था उसमें उस महिला के तीन बेटे थे और मैं था. मैं और महिला का मझला बेटा आगे थे. आगे चल कर किसी रिश्तेदार ने मेरी जगह ले ली. उसके बाद मुझे मिट्टी का एक वर्तन जो किसी दूसरे के पास था मुझे दे दिया गया. उस बर्तन में अगरबत्ती जल रही थी. मैं उस को ले कर आगे आगे चलने लगा. मैं आगे आगे ‘राम नाम सत्य’, ‘राम नाम सत्य’ बोलता रहा. पीछे सभी लोग उसको दुहराते रहे. गाँव पर मैं देखता था कि लोग घन्टा भी बजाते थे. यदि किसी बहुत अधिक उम्र के बुजुर्ग का स्वर्गवास हो जाता था तो बंड़े धूम धाम से उनकी अर्थी निकाली जाती थी. आखिर इस प्रचलन, परम्परा या कर्मकांड का क्या उद्देश्य था. इस पर मैंने कोई शोध नहीं किया है. इस लिए मैं जो कुछ लिखने जा रहा हूँ, वह मूल रूप से मेरी समझ पर आधारित है. 
पोस्ट लम्बा न हो इस लिए इस समय मैं यहीं पर विराम लगा रहा हूँ. आगे जो पोस्ट मैं लिखूँगा उस में उक्त विषय पर विस्तार से विचार करने की कोशिश करूँगा.

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