शब्द ' आजादी ' के आज कितने अर्थ है? हमने तो आजादी का एक मतलब समझा था. हमने यही समझा था कि आजादी का मतलब इस देश का अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त होना है. लेकिन आज ? आज बौद्धिक विलासिता के निमित्त आजादी शब्द पर ही अत्याचार हो रहा है. बौद्धिक विलासिता मे डूबे हुए तथा कथित बुद्धिजीवी आजादी शब्द पर इतना प्रहार कर रहे है कि इस पाक शब्द का मूल ही ख़त्म हो चुका है. कभी आर्थिक आजादी की बात कही जाती है तो कभी अभिव्यक्ति की आज़ादी. अरे भाई तुम्हारी आज़ादी का कौन हनन कर रहा है ? किससे तुम्हें आज़ादी चाहिए. लोक तंत्र मे यदि लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी हुई सरकार से - चाहे वह केन्द्र की सरकार हो किसी राज्य की -से आज़ादी माँग रहे हो तो तुम लोकतंत्र का अपमान कर रहे हो.
कुछ महीने पहले एक शक्स ने कश्मीर जो हमारे देश का अभिन्न अंग है उसकी आजादी के पक्ष नारा लगा रहा था या नारा लगाने वालों के साथ था उसको हीरो बना दिया गया. उसने स्पष्टीकरण दिया कि वह आर्थिक आज़ादी के लिए नारा लगाया था. उसको सहयोग मिला था कुतर्क करने वाले टीवी चैनलों और बुद्धि विलासिता मे लिप्त तथा कथित बुद्धिजीवियों से. अभी हाल मे ही एक व्यक्ति किसी विशेष संदर्भ एक शब्द का प्रयोग किया था. उस शब्द का प्रयोग गाँधीजी जी ने भी शराबियों के सम्बन्ध मे दिया था. उनका इशारा एक बुरी लत की तरफ़ था. शायद गाँधी जी आज होते और ऐसे शब्द का प्रयोग करते तो उनको भी लोग नहीं छोड़ते.
सबसे ज्यादा आजाद तो जानवर होता है. जंगल मे हर तरह की आज़ादी होती है. कोई भी जानवर अपने शरीर को नहीं ढंकता. कोई भी जानवर अपनी ईच्छा के अनुसार कही भी जा सकता है. किसी तरह का प्रतिबंध नही है किसी जानवर पर. कोई भी जानवर किसी कर्तव्य से बड़ा हुआ नहीँ है. प्रत्येक जानवर के पास असीमित अधिकार होता है. जब कि समाज मे ऐसा नहीं है. क्या आज़ादी की बात करने वाले उसी जंगल राज़ की तरफ़ समाज को नहीं धकेल रहे है. कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है. इस लिए मेरा तथाकथित बुद्धिजीवियों से नम्र निवेदन है कि वे अपनी अकूत बौद्धिक सम्पदा का इस्तेमाल समाज को बनाने मे करें इसी खब्डित करने मे नही.
कुछ महीने पहले एक शक्स ने कश्मीर जो हमारे देश का अभिन्न अंग है उसकी आजादी के पक्ष नारा लगा रहा था या नारा लगाने वालों के साथ था उसको हीरो बना दिया गया. उसने स्पष्टीकरण दिया कि वह आर्थिक आज़ादी के लिए नारा लगाया था. उसको सहयोग मिला था कुतर्क करने वाले टीवी चैनलों और बुद्धि विलासिता मे लिप्त तथा कथित बुद्धिजीवियों से. अभी हाल मे ही एक व्यक्ति किसी विशेष संदर्भ एक शब्द का प्रयोग किया था. उस शब्द का प्रयोग गाँधीजी जी ने भी शराबियों के सम्बन्ध मे दिया था. उनका इशारा एक बुरी लत की तरफ़ था. शायद गाँधी जी आज होते और ऐसे शब्द का प्रयोग करते तो उनको भी लोग नहीं छोड़ते.
सबसे ज्यादा आजाद तो जानवर होता है. जंगल मे हर तरह की आज़ादी होती है. कोई भी जानवर अपने शरीर को नहीं ढंकता. कोई भी जानवर अपनी ईच्छा के अनुसार कही भी जा सकता है. किसी तरह का प्रतिबंध नही है किसी जानवर पर. कोई भी जानवर किसी कर्तव्य से बड़ा हुआ नहीँ है. प्रत्येक जानवर के पास असीमित अधिकार होता है. जब कि समाज मे ऐसा नहीं है. क्या आज़ादी की बात करने वाले उसी जंगल राज़ की तरफ़ समाज को नहीं धकेल रहे है. कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है. इस लिए मेरा तथाकथित बुद्धिजीवियों से नम्र निवेदन है कि वे अपनी अकूत बौद्धिक सम्पदा का इस्तेमाल समाज को बनाने मे करें इसी खब्डित करने मे नही.
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