Saturday, 6 August 2016

शिक्षा और दम्भ

शिक्षा और दम्भ : मैं बहुत पहले की एक बात का जिक्र करने जा रहा हूँ. उस समय तक मुझे विज्ञान मे स्नातक की डिग्री मिल चुकी थी. मैं एक बारात मे गया था. बारात मेरे गाँव से गई थी. रात मे सोने के लिए बहुत कम चारपाइया उपलब्ध थी. कूछ लोगों ने पहले से ही चारपाइयो पर कब्जा कर रखा था. उन लोगों मे एक युवक भी था जिसकी उम्र उन बाकी लोगों से कम थी जो चारपाईयों पर लेते हुए थे. वह युवक कला में परास्नातक था. बारात में एक सम्मानित व्यक्ति भी थे. वे भी परास्नातक थे. वे खाना खा कर आए तो उनके सोने के लिए कोई भी चारपाई नही थी. वे एक कुर्सी पर बैठे थे. मैं भी उनके पास ही बैठा था. मैं भी गाँव के अग्रणी युवकों मे था. हमारे ही बीच का एक युवक यह देखने गया कि उक्त सम्मानित व्यक्ति के लिए कौन चारपाई छोड़ सकता था. हमारे बीच का युवक उस युवक के पास गया जिसका मैं ऊपर जिक्र कर चुका. हमारे बीच के उस युवक ने यही सोचा कि उम्र जो सबसे कम है उसी से चारपाई छोड़ने के लिए कहना उचित होगा. हमारे बीच के उक्त युवक ने जब उस लड़के से चारपाई छोड़ने के लिए कहा तो उसने पूछा किसको सोना है. जब उक्त सम्मानित व्यक्ति का नाम लिया गया तो उक्त लड़के ने सवाल दागा.बोला कि मुझमें और उक्त सम्मानित व्यक्ति मे क्या फर्क हैं. वे भी परास्नातक हैं और मैं भी परास्नातक हूँ.
उसके कहने का मतलब क्या था ? शायद वह यह कहना चाहता था कि समाज मे उसी व्यकि को सम्मान का अधिकार हैं जो शिक्षित हो.
जब इस बात का पता मुझे लगा तो मैं उसके पास गया. वह मेरा सम्मान करता था. रिश्ते मे मेरा भतीजा भी लगता था. मै जब उसके पास गया तो वह उठ कर बैठ गया. मैंने उससे पूछा कि तुम मुझे क्यों सम्मान देते हो. मैं तो स्नातक हूँ और तुम परास्नातक हो. उसने कहा कि चाचा आपकी बात अलग हैं. मैंने उससे कहा कि तब यह कहो न सम्मान के लिऐ मात्र शिक्षा ही काफी नहीं है. शिक्षा के अलावा आदमी के अंदर कूछ खास भी होना चाहिए. मैने उससे यह भी कहा कि भारतीय संस्कॄति में यदि कोई उम्र दराज़ है वह सम्मान पाने का हक़दार हैं भले ही एह अशिक्षित हो या किसी ऊँचे पद पर न हो. मैने कहा कि जिस व्यक्ति के चारपाई चाहिए वे सिर्फ परास्नातक ही नहीं है बल्कि बहुत कुछ है. सभी लोग उनका सम्मान करते हैं , मैं भी करता हूँ. मेरी बात का उसके पास कोई उत्तर नहीं था. वह मुस्कराते चारपाई से उठ गय़ा.
वैसे तो मैं इस वाकया के माध्यम से क्या कहना चाहता हूँ ,सुस्पष्ट हैं. फ़िर भी उपसंहार के तौर पर मैं कहना चाहता हूँ कि उच्च शिक्षित हो कर यदि हम आदमी नहीं बन पाते, शिक्षा का इस्तेमाल हम समाज की बेहतरी के लिऐ नही करते बल्कि निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिऐ करते हैं तो हमें सम्मान की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए. हमें उसी से सम्मान की अपेक्षा करनी चाहिए जिसको हम सम्मान देते हैं. बद्किश्मति से आज का शिक्षित वर्ग मात्र बौधिक क्षमता और शिक्षा के बल पर सम्मान की अपेक्षा करता है. उसकी एक ही वजह हैं पुरातन संस्कृति का क्षय होना.

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