यदि हम अपने देश की राजनीति पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि कुछ राजनेता या नेत्री ऐसे हैं जो खुले आम जाति, धर्म, औऱ क्षेत्र की बात करते हैं. उनके समर्थको की सोच सिर्फ उनकी जाति, धर्म औऱ क्षेत्र के लोगों तक सीमित रहती है. उनके लिऐ देश उतना महत्वपूर्ण नहीं हैं जितना कि उनके नेता. अपने नेता के आगे वे किसी तरह का प्रश्न चिन्ह बर्दाश्त नहीं कर पाते. ऐसे लोगों के बारे में कहा जा सकता है कि उनकी आस्था लोकतंत्र में नहीं राजतंत्र में हैं. ऐसा राज़ तंत्र जिसका राजा ऐसे लोगों की जाति, धर्म का या क्षेत्र का व्यक्ति होता हैं. ऐसे लोग फ़िर भी समझ में आते हैं. वे खुल्लम खुल्ला जाति, धर्म या क्षेत्र की बात करते हैं. वे पाखंडी नहीं हैं.वे धोखेबाज़ नहीं हैं. ऐसा नहीं हैं कि वे राम राम की माला जपते हैं औऱ जब कोई राम भक्त उनके करीब जाता हैं वे अपने बगल में रखे हुये छूरे से उसे घायल कर देते हैं. इसके विपरीत कुछ ऐसे राजनेता हैं जो पाखंडी हैं. वे औऱ उनके परिवार वाले जाति, धर्म औऱ क्षेत्र की संकीर्णता में आकंठ डूबे होते हैं मगर दिखावा ऐसा करते हैं कि वे जाति औऱ धर्म की राजनीति नहीं करते. वे धर्म निरपेक्ष होने का नाटक करते हैं. पर वे सबसे बड़े धोखे बाज औऱ पाखंडी हैं.
एक ऐसे राजनीतिज्ञ है, जो कभी नौकर शाह थे. उन्होंने राजनीति में शुचिता लाने का हम सबसे वादा किया. लगा था कि वे राजनीति में आकर आदर्श पस्तुत करेंगे. नीर क्षीर विवेक का उनमें दर्शन होगा. वे किसी की आलोचना नहीं बल्कि गुण दोष के आधार पर समालोचना करेंगे. लेकिन हुआ उसका उल्टा. उन्होंने संकीर्णता की सारी सीमायें तोड़ दी हैं. उनको ऐसी पार्टियों और नेताओं में कोई कमी नज़र नहीं आती जिनका दामन दागदार रहा हैं. उनके साथी भी ऐसे है जिनमें से किसी ने समाज सेवा नहीं की हैं. मैं जब पहले से स्थापित नेताओं से उनकी तुलना करता हूँ तो पाता हूँ कि उनकी राजनीति निकृष्टतम स्तर की हैं. उनकी राजनीति में शुचिता का लेश मात्र भी नहीं हैं.
मैं उस किसी भी नेता या व्यक्ति को सही नहीं मानता जिसे किसी अन्य पार्टी या नेता या व्यक्ति में सिर्फ बुराइयां ही नज़र आती हैं और कोई भी अच्छाई नज़र नहीं आती. मुझे उम्मीद थी कि जिस नेता की मै बात करता हूँ उसकी सभी बातें सारगर्भित होगी, उसकी दृष्टि सम्यक होगी
, वह उच्च शिक्षित लोगों के लिऐ एक मॉडल होगा. मगर अफसोस कि वह नेता उच्च शिक्षा के नाम पर एक धब्बा बन कर रह गया है. उसमें नम्रता का अभाव हैं. उनके रोम रोम में अहंकार भरा हुआ हैं. आज़ की तारीख में यदि मुझसे कोई पूछे कि चर्चतित नेताओं में सबसे सारहीन और सबसे बड़ा पाखंडी नेता कौन हैं तो मेरी निगाह में वही हैं. वह पूरी तरह से संकीर्णता में डूब चुके हैं. मै उस नेता का नाम नहीं ले रहा हूँ. मेरे मित्र समझ गये होगे कि आखिर वह हैं कौन.
एक ऐसे राजनीतिज्ञ है, जो कभी नौकर शाह थे. उन्होंने राजनीति में शुचिता लाने का हम सबसे वादा किया. लगा था कि वे राजनीति में आकर आदर्श पस्तुत करेंगे. नीर क्षीर विवेक का उनमें दर्शन होगा. वे किसी की आलोचना नहीं बल्कि गुण दोष के आधार पर समालोचना करेंगे. लेकिन हुआ उसका उल्टा. उन्होंने संकीर्णता की सारी सीमायें तोड़ दी हैं. उनको ऐसी पार्टियों और नेताओं में कोई कमी नज़र नहीं आती जिनका दामन दागदार रहा हैं. उनके साथी भी ऐसे है जिनमें से किसी ने समाज सेवा नहीं की हैं. मैं जब पहले से स्थापित नेताओं से उनकी तुलना करता हूँ तो पाता हूँ कि उनकी राजनीति निकृष्टतम स्तर की हैं. उनकी राजनीति में शुचिता का लेश मात्र भी नहीं हैं.
मैं उस किसी भी नेता या व्यक्ति को सही नहीं मानता जिसे किसी अन्य पार्टी या नेता या व्यक्ति में सिर्फ बुराइयां ही नज़र आती हैं और कोई भी अच्छाई नज़र नहीं आती. मुझे उम्मीद थी कि जिस नेता की मै बात करता हूँ उसकी सभी बातें सारगर्भित होगी, उसकी दृष्टि सम्यक होगी
, वह उच्च शिक्षित लोगों के लिऐ एक मॉडल होगा. मगर अफसोस कि वह नेता उच्च शिक्षा के नाम पर एक धब्बा बन कर रह गया है. उसमें नम्रता का अभाव हैं. उनके रोम रोम में अहंकार भरा हुआ हैं. आज़ की तारीख में यदि मुझसे कोई पूछे कि चर्चतित नेताओं में सबसे सारहीन और सबसे बड़ा पाखंडी नेता कौन हैं तो मेरी निगाह में वही हैं. वह पूरी तरह से संकीर्णता में डूब चुके हैं. मै उस नेता का नाम नहीं ले रहा हूँ. मेरे मित्र समझ गये होगे कि आखिर वह हैं कौन.
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