कल के पोस्ट में मैंने शिक्षा और दम्भ शीर्षक के अन्तर्गत इस बात पर जोर दिया था कि सम्मान पाने के लिऐ मात्र उच्च शिक्षा ही पर्याप्त नहीं हैं. सम्मान पाने के लिऐ आवश्यक हैं कि शिक्षित व्यक्ति के अंदर संस्कार और इंसानियत हो. आज मैं दोस्ती का मतलब क्या हैं उस पर अपना विचार करने जा रहा हूँ.
जैसा कि मैंने कल के पोस्ट में लिखा हैं , गाँव की बारातों में अक्सर चारपाई के लिऐ मारा मारी रहती थी. हम लोग एक बारात में गए थे. नाई की बारात थी. वहाँ भी रात में सोने के लिऐ पर्याप्त चारपाईया नहीं था. अक्सर ऐसा होता था कि जो बुजुर्ग होता था उसको बारात में प्राथमिकता दी जाती थी. कम उम्र का आदमी बुजुर्ग के लिऐ अपने आप चारपाई छोड़ देता था. यदि कोई अपने आप चारपाई खाली नहीं करता था तो जिसकी बारात होती थी वह अनुनय विनय करके चारपाई खाली करवा था. उस बारात में दो तीन दबंग किश्म के युवकों ने पहले से ही चारपाईया हथिया रखी थी. एक बुजुर्ग आए. उनका गाँव मे कोई विशेष स्थान नहीं था. कुछ युवकों को उन दबंग युवकों का आचरण कभी ठीक नही लगता था. उन युवकों में मैं और मेरा दोस्ती भी था. संयोग से वह बुजुर्ग मेरे दोस्ती की की खानदान का था. उसने नाई से कहाँ कि आप एक चारपाई खाली करवा दो. नाई गय़ा. उसने हिम्मत की चारपाई खाली करवाने की मगर वह सफल नहीं हो पाया.उसने वापस आ कर अपनी असमर्थता बताई. फ़िर क्या था? कुछ युवक ज़बरदस्ती चारपाई खाली करवाने लगे. उस दौरान मेरे दोस्त और उन दबंग युवकों मे कहा सुनी हो गई. मैंने अपने दोस्त की बात का समर्थन किया. उसी दौरान एक दो बुजुर्ग जग गए. दबंग युवकों ने उन बुजुर्गो की बात मान ली और चारपाईया खाली कर दी.
गाँव वापस आ कर उन दबंग युवकों ने अफवाह फैला दी कि मेरे दोस्त ने शराब के लिऐ तकरार की थी. दोस्त के साथ मेरा भी नाम उन सबों ने जोड़ दिया. मेरे पिता जी को तो मेरे ऊपर अंध विश्वास था. इतना विश्वास था कि मेरे खिलाफ किसी भी बात पर वे यकीन नहीं कर सजते थे. लेकिन मेरे दोस्त के पिता जी को अपने बेटे से अधिक मेरे ऊपर यकीन था. जब यह बात उन तक पहुँची तो उन्हें भी विश्वास नहीं हुआ. फ़िर भी वो मेरे पास आये. जब मैंने उक्त घटना को विस्तार से बताने लगा तो उन्होंने मुझसे कहा कि सफाई देने की कोई ज़रूरत नहीं. तुम्हारा इतना कहना ही काफी है वैसा कूछ नहीं हुआ था. तुम्हारे ऊपर मुझे पूरा भरोसा है.
मैंने इस वाकया का जिक्र सिर्फ यह रेखांकित करने के लिये किया कि दोस्ती की आत्मा विश्वास हैं. विश्वास भी ऐसा जो दोस्तो से आगे बढ़कर उनके परिजनों के दिल मे उतर जाय. यदि ऐसा नहीं है तो मेरी समझ में वह दोस्ती नहीं है. दुर्भाग्य से आज सिर्फ एक साथ बैठ कर गप शाप करना, हा हा ही ही करना , मौज मस्ती करना और इसी तरह का काम करने को दोस्ती की संज्ञा दी जाती है. मैं उन तमाम लोगों से माफी चाहता हूँ जो ऐसे क्रियाकलापों को ही दोस्ती समझते है
जैसा कि मैंने कल के पोस्ट में लिखा हैं , गाँव की बारातों में अक्सर चारपाई के लिऐ मारा मारी रहती थी. हम लोग एक बारात में गए थे. नाई की बारात थी. वहाँ भी रात में सोने के लिऐ पर्याप्त चारपाईया नहीं था. अक्सर ऐसा होता था कि जो बुजुर्ग होता था उसको बारात में प्राथमिकता दी जाती थी. कम उम्र का आदमी बुजुर्ग के लिऐ अपने आप चारपाई छोड़ देता था. यदि कोई अपने आप चारपाई खाली नहीं करता था तो जिसकी बारात होती थी वह अनुनय विनय करके चारपाई खाली करवा था. उस बारात में दो तीन दबंग किश्म के युवकों ने पहले से ही चारपाईया हथिया रखी थी. एक बुजुर्ग आए. उनका गाँव मे कोई विशेष स्थान नहीं था. कुछ युवकों को उन दबंग युवकों का आचरण कभी ठीक नही लगता था. उन युवकों में मैं और मेरा दोस्ती भी था. संयोग से वह बुजुर्ग मेरे दोस्ती की की खानदान का था. उसने नाई से कहाँ कि आप एक चारपाई खाली करवा दो. नाई गय़ा. उसने हिम्मत की चारपाई खाली करवाने की मगर वह सफल नहीं हो पाया.उसने वापस आ कर अपनी असमर्थता बताई. फ़िर क्या था? कुछ युवक ज़बरदस्ती चारपाई खाली करवाने लगे. उस दौरान मेरे दोस्त और उन दबंग युवकों मे कहा सुनी हो गई. मैंने अपने दोस्त की बात का समर्थन किया. उसी दौरान एक दो बुजुर्ग जग गए. दबंग युवकों ने उन बुजुर्गो की बात मान ली और चारपाईया खाली कर दी.
गाँव वापस आ कर उन दबंग युवकों ने अफवाह फैला दी कि मेरे दोस्त ने शराब के लिऐ तकरार की थी. दोस्त के साथ मेरा भी नाम उन सबों ने जोड़ दिया. मेरे पिता जी को तो मेरे ऊपर अंध विश्वास था. इतना विश्वास था कि मेरे खिलाफ किसी भी बात पर वे यकीन नहीं कर सजते थे. लेकिन मेरे दोस्त के पिता जी को अपने बेटे से अधिक मेरे ऊपर यकीन था. जब यह बात उन तक पहुँची तो उन्हें भी विश्वास नहीं हुआ. फ़िर भी वो मेरे पास आये. जब मैंने उक्त घटना को विस्तार से बताने लगा तो उन्होंने मुझसे कहा कि सफाई देने की कोई ज़रूरत नहीं. तुम्हारा इतना कहना ही काफी है वैसा कूछ नहीं हुआ था. तुम्हारे ऊपर मुझे पूरा भरोसा है.
मैंने इस वाकया का जिक्र सिर्फ यह रेखांकित करने के लिये किया कि दोस्ती की आत्मा विश्वास हैं. विश्वास भी ऐसा जो दोस्तो से आगे बढ़कर उनके परिजनों के दिल मे उतर जाय. यदि ऐसा नहीं है तो मेरी समझ में वह दोस्ती नहीं है. दुर्भाग्य से आज सिर्फ एक साथ बैठ कर गप शाप करना, हा हा ही ही करना , मौज मस्ती करना और इसी तरह का काम करने को दोस्ती की संज्ञा दी जाती है. मैं उन तमाम लोगों से माफी चाहता हूँ जो ऐसे क्रियाकलापों को ही दोस्ती समझते है
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